ख़ूब-ओ-ज़िश्त-ए-जहाँ का फ़र्क़ न पूछ
मौत जब आई सब बराबर था
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शैख़ के हाल पर तअस्सुफ़ है
किसी का दिल को रहा इंतिज़ार सारी रात
क्यूँ देखिए न हुस्न-ए-ख़ुदा-दाद की तरफ़
मुश्किल का सामना हो तो हिम्मत न हारिए
साथ दुनिया का नहीं तालिब-ए-दुनिया देते
दिल न देते उसे तो क्या करते
बहे साथ अश्क के लख़्त-ए-जिगर तक
हुस्न की जिंस ख़रीदार लिए फिरती है
मेरे सर में जो रात चक्कर था
इबादत ख़ुदा की ब-उम्मीद-ए-हूर
दोस्ती की तुम ने दुश्मन से अजब तुम दोस्त हो