सदा Poetry (page 4)

लब-ए-फ़ुरात वही तिश्नगी का मंज़र है

हफ़ीज़ बनारसी

बोसीदा इमारात को मिस्मार किया है

गुलज़ार वफ़ा चौदरी

हिज्र के तपते मौसम में भी दिल उन से वाबस्ता है

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

तिरा मय-ख़्वार ख़ुश-आग़ाज़-ओ-ख़ुश-अंजाम है साक़ी

ग़ुबार भट्टी

सुना तो है कि कभी बे-नियाज़-ए-ग़म थी हयात

फ़िराक़ गोरखपुरी

मय-कदे में आज इक दुनिया को इज़्न-ए-आम था

फ़िराक़ गोरखपुरी

इक रोज़ हुए थे कुछ इशारात ख़फ़ी से

फ़िराक़ गोरखपुरी

बस्तियाँ ढूँढ रही हैं उन्हें वीरानों में

फ़िराक़ गोरखपुरी

बहसें छिड़ी हुई हैं हयात-ओ-ममात की

फ़िराक़ गोरखपुरी

एक नज़्म जंगलों के नाम

फ़ारूक़ नाज़की

सलीब-ए-मौजा-ए-आब-ओ-हवा पे लिक्खा हूँ

फ़ारूक़ मुज़्तर

मैं शो'ला-ए-इज़हार हूँ कोताह हूँ क़द तक

फ़ारिग़ बुख़ारी

ख़िरद भी ना-मेहरबाँ रहेगी शुऊ'र भी सर-गराँ रहेगा

फ़ारिग़ बुख़ारी

ऐ मौत तुझ पे उम्र-ए-अबद का मदार है

फ़ानी बदायुनी

हम तो मजबूर-ए-वफ़ा हैं

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

एक नग़्मा करबला-ए-बैरुत के लिए

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

आज इक हर्फ़ को फिर ढूँडता फिरता है ख़याल

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

हमारे शजरे बिखर गए हैं

फ़हीम शनास काज़मी

एक पल जा न कहूँ नैन सूँ ऐ नूर-ए-बसर

फ़ाएज़ देहलवी

किस दिल से हम इरादा-ए-तर्क-ए-जुनूँ करें

एजाज़ अासिफ़

ता-अबद हासिल-ए-अज़ल हूँ मैं

डॉ. पिन्हाँ

ख़्वाब-कारी वही कमख़्वाब वही है कि नहीं

दानियाल तरीर

रामायण का एक सीन

चकबस्त ब्रिज नारायण

जीने वाला ये समझता नहीं सौदाई है

बिस्मिल इलाहाबादी

अदाएँ ता-अबद बिखरी पड़ी हैं

बयान मेरठी

चराग़-ए-हुस्न है रौशन किसी का

बयान मेरठी

इक बे-सबात अक्स बना बे-निशाँ गया

बशीर अहमद बशीर

समुंदर का तमाशा कर रहा हूँ

बख़्श लाइलपूरी

मिरे हर लफ़्ज़ की तौक़ीर रहने के लिए है

बख़्श लाइलपूरी

कुफ़्र एक रंग-ए-क़ुदरत-ए-बे-इंतिहा में है

बहराम जी

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