आशनाई Poetry (page 2)

समझ रहा है तिरी हर ख़ता का हामी मुझे

राशिद आज़र

ख़ुदा ने लाज रखी मेरी बे-नवाई की

इक़बाल अशहर

फ़क़ीराना है दिल मुक़ीम उस की रह का

इंशा अल्लाह ख़ान

गया सब अंदोह अपने दिल का थमे अब आँसू क़रार आया

इमदाद अली बहर

वफ़ा की ख़ैर मनाता हूँ बेवफ़ाई में भी

इफ़्तिख़ार आरिफ़

मिरे रियाज़ का आख़िर असर दिखाई दिया

हज़ीं लुधियानवी

शहर-ए-ना-पुरसाँ में कुछ अपना पता मिलता नहीं

हसन आबिदी

किस की उस तक रसाई होती है

हक़ीर

हुबाब-आसा में दम भरता हूँ तेरी आश्नाई का

हैदर अली आतिश

इक उम्र से हम तुम आश्ना हैं

हफ़ीज़ होशियारपुरी

हसरत ऐ जाँ शब-ए-जुदाई है

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

पए-नज़्र-ए-करम तोहफ़ा है शर्म-ए-ना-रसाई का

ग़ालिब

क़तरा दरिया-ए-आश्नाई है

फ़ानी बदायुनी

किए आरज़ू से पैमाँ जो मआल तक न पहुँचे

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

जागीर अगर बहुत न मिली हम कूँ ग़म नहीं

फ़ाएज़ देहलवी

तेरी अँखियाँ के तसव्वुर में सदा मस्ताना हूँ

दाऊद औरंगाबादी

दिल चुरा कर नज़र चुराई है

दाग़ देहलवी

शिकवा अपने तालेओं की ना-रसाई का करूँ

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

वाँ रसाई नहीं तो फिर क्या है

ज़फ़र

अगर दश्त-ए-तलब से दश्त-ए-इम्कानी में आ जाते

अज़्म शाकरी

23-मार्च अज़ान-ए-सुब्ह-ए-नियाज़

अशरफ़ जावेद

यही तुम पर भी खुलना है

अंजुम ख़लीक़

न बेवफ़ाई का डर था न ग़म जुदाई का

अमीर मीनाई

धूम थी अपनी पारसाई की

अल्ताफ़ हुसैन हाली

धूम थी अपनी पारसाई की

अल्ताफ़ हुसैन हाली

तारिक़ की दुआ

अल्लामा इक़बाल

हर चीज़ है महव-ए-ख़ुद-नुमाई

अल्लामा इक़बाल

न माह-रू न किसी माहताब से हुई थी

अली मुज़म्मिल

ज़रा सी देर थी बस इक दिया जलाना था

अख्तर शुमार

वो जो दीवार-ए-आश्नाई थी

अख़्तर होशियारपुरी

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