चाँद Poetry (page 37)

अंदेशा-ए-जाँ

अहमद हमेश

मुँह अँधेरे घर से निकले फिर थे हंगामे बहुत

अहमद हमदानी

जब से इक चाँद की चाहत में सितारा हुआ हूँ

अहमद फ़रीद

काली दीवार

अहमद फ़राज़

ऐ मेरे सारे लोगो

अहमद फ़राज़

तेरे होते हुए महफ़िल में जलाते हैं चराग़

अहमद फ़राज़

सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं

अहमद फ़राज़

वक़्त के हर इक नक़्श का मअ'नी इतना बदला बदला होगा

अहमद फ़क़ीह

सदियों के अँधेरे में उतारा करे कोई

अहमद फ़क़ीह

मैं क्या हूँ मुझे तुम ने जो आज़ार पे खींचा

अहमद फ़क़ीह

दस्तक हवा की सुन के कभी डर नहीं गया

अहमद अज़ीम

जब से में ने देखा है एक ख़ुशनुमा चेहरा

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

चोरी कहीं खुले न नसीम-ए-बहार की

आग़ा हश्र काश्मीरी

ख़ुदा-मालूम किस की चाँद से तस्वीर मिट्टी की

आग़ा हज्जू शरफ़

मिटते हुए नुक़ूश-ए-वफ़ा को उभारिए

अफ़ज़ल मिनहास

नींद आई न खुला रात का बिस्तर मुझ से

अफ़ज़ल गौहर राव

मैं ख़ुद को इस लिए मंज़र पे लाने वाला नहीं

अफ़ज़ल गौहर राव

तुम हमारे हो हम तुम्हारे हैं

अफ़ज़ल इलाहाबादी

किसी की याद रुलाये तो क्या किया जाए

अफ़ज़ल इलाहाबादी

ग़मों की धूप में मिलते हैं साएबाँ बन कर

अफ़ज़ल इलाहाबादी

अगर उन्हें मालूम हो जाए

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

हिजरत

आफ़ताब शम्सी

कभी ख़ुद को दर्द-शनास करो कभी आओ ना

आफ़ताब इक़बाल शमीम

गुज़रे लम्हात का एहसास हुआ जाता है

अफ़रोज़ आलम

जो बन-सँवर के वो इक माह-रू निकलता है

अादिल रशीद

फिर बालों में रात हुई

आदिल मंसूरी

वो मर गई थी

आदिल मंसूरी

तंग तारीक गली में कुत्ता

आदिल मंसूरी

सियाह चाँद के टुकड़ों को मैं चबा जाऊँ

आदिल मंसूरी

गोश्त की सड़कों पर

आदिल मंसूरी

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