भागो Poetry (page 24)

परछाईं का सफ़र

अहमद हमेश

मा-बा'द-उत-तबीआत

अहमद हमेश

तुम साथ चले थे तो मिरे साथ चला दिन

अहमद हमेश

न घर है कोई न सामान कुछ रहा बाक़ी

अहमद हमेश

ये जो इक सैल-ए-फ़ना है मिरे पीछे पीछे

अहमद फ़रीद

फ़ज़ा उदास है रुत मुज़्महिल है मैं चुप हूँ

अहमद फ़राज़

मयूरका

अहमद फ़राज़

हच-हाईकर

अहमद फ़राज़

तिरा क़ुर्ब था कि फ़िराक़ था वही तेरी जल्वागरी रही

अहमद फ़राज़

सामने उस के कभी उस की सताइश नहीं की

अहमद फ़राज़

इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की

अहमद फ़राज़

हुई है शाम तो आँखों में बस गया फिर तू

अहमद फ़राज़

हर कोई तुर्रा-ए-पेचाक पहन कर निकला

अहमद फ़राज़

अब के तजदीद-ए-वफ़ा का नहीं इम्काँ जानाँ

अहमद फ़राज़

सड़क के पार चला जा रहा है बचता हुआ

अहमद अज़ीम

किसे ख़बर कि है क्या क्या ये जान थामे हुए

अहमद अज़ीम

ख़िज़ाँ के आते आते

अहमद आज़ाद

ये मिरा वहम तो कुछ और सुना जाता है

अहमद अता

कल ख़्वाब में इक परी मिली थी

अहमद अता

जितनी हम चाहते थे उतनी मोहब्बत नहीं दी

अहमद अशफ़ाक़

हिंसा के पहले मुझे फिर रुला गया इक शख़्स

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

दूर से क्या मुस्कुरा कर देखना

आग़ाज़ बरनी

चलेगा नहीं मुझ पे फ़ुक़रा तुम्हारा

आग़ा शायर

कलेजे में हज़ारों दाग़ दिल में हसरतें लाखों

आग़ा शाएर क़ज़लबाश

न निकला मुँह से कुछ निकली न कुछ भी क़ल्ब-ए-मुज़्तर की

आग़ा शाएर क़ज़लबाश

आलम में हरे होंगे अश्जार जो मैं रोया

आग़ा हज्जू शरफ़

हुस्न हीरे की कनी हो जैसे

अफ़ज़ल परवेज़

अपने ही तले आई ज़मीनों से निकल कर

अफ़ज़ाल नवेद

काँच की ज़ंजीर टूटी तो सदा भी आएगी

अफ़ज़ल मिनहास

गहरा सुकूत ज़ेहन को बेहाल कर गया

अफ़ज़ल मिनहास

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