दीन Poetry (page 4)

न पूछ हिज्र में जो हाल अब हमारा है

ग़मगीन देहलवी

हाँ वो नहीं ख़ुदा-परस्त जाओ वो बेवफ़ा सही

ग़ालिब

नहीं है ज़ख़्म कोई बख़िये के दर-ख़ुर मिरे तन में

ग़ालिब

दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ

ग़ालिब

फैमली-प्लैनिंग

फ़ुर्क़त काकोरवी

शौक़ीन मिज़ाजों के रंगीन तबीअ'त के

फ़ाज़िल जमीली

नहीं ख़याल तो फिर इंतिज़ार किस का है

फ़ातिमा वसीया जायसी

कोहसार का ख़ूगर है न पाबंद-ए-गुलिस्ताँ

फ़ारूक़ बाँसपारी

किस किस फूल की शादाबी को मस्ख़ करोगे बोलो!!!

फरीहा नक़वी

बीते ख़्वाब की आदी आँखें कौन उन्हें समझाए

फरीहा नक़वी

किसी के एक इशारे में किस को क्या न मिला

फ़ानी बदायुनी

वो और होंगे जिन को हरम की तलाश है

फ़ना बुलंदशहरी

तुम हो शरीक-ए-ग़म तो मुझे कोई ग़म नहीं

फ़ना बुलंदशहरी

क्यूँ हर तरफ़ तू ख़्वार हुआ एहतिसाब कर

अहया भोजपुरी

मौसीक़ी से इलाज

दिलावर फ़िगार

लग गए हैं फ़ोन लगने में जो पच्चीस साल

दिलावर फ़िगार

बाल बिखेरे आज परी तुर्बत पर मेरे आएगी

भारतेंदु हरिश्चंद्र

दिल मेरा तेरा ताब-ए-फ़रमाँ है क्या करूँ

बहज़ाद लखनवी

ख़ंजर तलाश करता है

बेबाक भोजपुरी

हिकमत का बुत-ख़ाना

बेबाक भोजपुरी

ग़म-ए-आफ़ाक़ में आरिफ़ अगर करवट बदलता है

बेबाक भोजपुरी

बदलने रंग सिखलाए जहाँ को

बयान मेरठी

आएँगे गर उन्हें ग़ैरत होगी

बयान मेरठी

सर-ए-राह कुछ भी कहा नहीं कभी उस के घर मैं गया नहीं

बशीर बद्र

टुकड़े नहीं हैं आँसुओं में दिल के चार पाँच

ज़फ़र

गालियाँ तनख़्वाह ठहरी है अगर बट जाएगी

ज़फ़र

वतन

अज़मतुल्लाह ख़ाँ

वो एक रौ जो लब-ए-नुक्ता-चीं में होती है

अज़ीज़ हामिद मदनी

तिरे बदन के नए ज़ाविए बनाता हुआ

अशरफ़ सलीम

यतीम इंसाफ़

अशोक लाल

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