ओर Poetry (page 3)

भूत

वज़ीर आग़ा

उड़ी जो गर्द तो इस ख़ाक-दाँ को पहचाना

वज़ीर आग़ा

बादल बरस के खुल गया रुत मेहरबाँ हुई

वज़ीर आग़ा

दिलों पे छाई है गर्द-ए-कुदूरत

वसीम मीनाई

मिली हवाओं में उड़ने की वो सज़ा यारो

वसीम बरेलवी

कुएँ जो पानी की बिन प्यास चाह रखते हैं

वक़ार हिल्म सय्यद नगलवी

ख़ूनी क़िला

वामिक़ जौनपुरी

ज़हराब पीने वाले अमर हो के रह गए

वामिक़ जौनपुरी

नयन में ख़ूँ भर आया दिल में ख़ार-ए-ग़म छुपा शायद

वली उज़लत

माह-ए-कामिल हो मुक़ाबिल यार के रू से चे-ख़ुश

वली उज़लत

कुफ़्र मोमिन है न करना दिलबराँ से इख़्तिलात

वली उज़लत

ख़ुनुक-जोशी न करते जूँ सबा गर ये बुताँ हम से

वली उज़लत

जिन दिनों हम उस शब-ए-हज़ के सियह-कारों में थे

वली उज़लत

बहार आधी गुज़र गई हाए हम क़ैदी हैं ज़िंदाँ के

वली उज़लत

वो सूरतें जो बड़ी शोख़ हैं सजीली हैं

वाली आसी

हर एक गाम पे सज्दा यहाँ रवा होगा

वहीदा नसीम

आग अपने ही दामन की ज़रा पहले बुझा लो

वहीद अख़्तर

पचासी साल नीचे गिर गए

वहीद अहमद

कोई बस्ती कि मुझ में बस्ती है

वहीद अहमद

जुनूँ के बाब में अब के ये राएगानी हो

विपुल कुमार

फ़िक्र का कारोबार था मुझ में

विकास शर्मा राज़

क़ज़ा जो दे तो इलाही ज़रा बदल के मुझे

वारिस किरमानी

हम हैं बस इतने ही साहिल-आश्ना

उम्मीद फ़ाज़ली

हिजाब उट्ठे हैं लेकिन वो रू-ब-रू तो नहीं

उम्मीद फ़ाज़ली

आईना-ए-वहशत को जिला जिस से मिली है

उम्मीद फ़ाज़ली

नूर-जहाँ का मज़ार

तिलोकचंद महरूम

हमारे वास्ते है एक जीना और मर जाना

तिलोकचंद महरूम

बाइस-ए-इम्बिसात हो आमद-ए-नौ-बहार क्या

तिलोकचंद महरूम

गर्द-आलूद दरीदा चेहरा यूँ है माह ओ साल के ब'अद

तौसीफ़ तबस्सुम

दिल था पहलू में तो कहते थे तमन्ना क्या है

तौसीफ़ तबस्सुम

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