ग़ज़ल Poetry (page 25)

सरापा तिरा क्या क़यामत नहीं है?

आलोक यादव

इक ज़रा सी चाह में जिस रोज़ बिक जाता हूँ मैं

आलोक यादव

वो बे-असर था मुसलसल दलील करते हुए

आलोक मिश्रा

ख़ाक हो कर भी कब मिटूंगा मैं

आलोक मिश्रा

बुझे लबों पे तबस्सुम के गुल सजाता हुआ

आलोक मिश्रा

ज़ौक़ ओ शौक़

अल्लामा इक़बाल

जावेद के नाम

अल्लामा इक़बाल

ये कौन ग़ज़ल-ख़्वाँ है पुर-सोज़ ओ नशात-अंगेज़

अल्लामा इक़बाल

वही मेरी कम-नसीबी वही तेरी बे-नियाज़ी

अल्लामा इक़बाल

ला फिर इक बार वही बादा ओ जाम ऐ साक़ी

अल्लामा इक़बाल

इक दानिश-ए-नूरानी इक दानिश-ए-बुरहानी

अल्लामा इक़बाल

मेरा सफ़र

अली सरदार जाफ़री

हसीन-तर

अली सरदार जाफ़री

शिकस्त-ए-शौक़ को तकमील-ए-आरज़ू कहिए

अली सरदार जाफ़री

हम जो महफ़िल में तिरी सीना-फ़िगार आते हैं

अली सरदार जाफ़री

फ़रोग़-ए-दीदा-ओ-दिल लाला-ए-सहर की तरह

अली सरदार जाफ़री

अक़ीदे बुझ रहे हैं शम-ए-जाँ गुल होती जाती है

अली सरदार जाफ़री

अक़ीदे बुझ रहे हैं शम-ए-जाँ ग़ुल होती जाती है

अली सरदार जाफ़री

हमारी आँख ने देखे हैं ऐसे मंज़र भी

अली अहमद जलीली

फ़रेब-ए-निकहत-ओ-गुलज़ार से बचाओ मुझे

अली अहमद जलीली

एक खिड़की गली की खुली रात भर

अली अहमद जलीली

मैं नक़्श-हा-ए-ख़ून-ए-वफ़ा छोड़ जाऊँगा

अलीम उस्मानी

नाज़िल हुआ था शहर में काला अज़ाब एक

अलीम सबा नवेदी

अब भी ज़र्रों पे सितारों का गुमाँ है कि नहीं

आलमताब तिश्ना

जब तक खुली नहीं थी असरार लग रही थी

आलम ख़ुर्शीद

ला पिला साक़ी शराब-ए-अर्ग़वानी फिर कहाँ

अख़्तर शीरानी

ज़िंदगी होगी मिरी ऐ ग़म-ए-दौराँ इक रोज़

अख़्तर अंसारी अकबराबादी

सुरूर

अख़लाक़ अहमद आहन

सज़ा है किस के लिए और जज़ा है किस के लिए

अकबर अली खान अर्शी जादह

कभी ज़ख़्म ज़ख़्म निखर के देख कभी दाग़ दाग़ सँवर के देख

अकबर अली खान अर्शी जादह

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