ग़ज़ल Poetry (page 3)

हर चंद 'वहशत' अपनी ग़ज़ल थी गिरी हुई

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

नहीं मुमकिन लब-ए-आशिक़ से हर्फ़-ए-मुद्दआ निकले

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

क्या है कि आज चलते हो कतरा के राह से

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

जुदा करेंगे न हम दिल से हसरत-ए-दिल को

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

जो तुझ से शोर-ए-तबस्सुम ज़रा कमी होगी

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

तू ग़ज़ल बन के उतर बात मुकम्मल हो जाए

वहीद अख़्तर

तुम गए साथ उजालों का भी झूटा ठहरा

वहीद अख़्तर

तू ग़ज़ल बन के उतर बात मुकम्मल हो जाए

वहीद अख़्तर

अँधेरा इतना नहीं है कि कुछ दिखाई न दे

वहीद अख़्तर

जीवन है पल पल की उलझन किस किस पल की बात करें

विलास पंडित मुसाफ़िर

जिसे देखो ग़ज़ल पहने हुए है

विकास शर्मा राज़

सर-ए-अफ़्लाक बिछा चाहती है

विकास शर्मा राज़

मुसाफ़िरों के लिए साज़गार थोड़ी है

विकास शर्मा राज़

कोई उस के बराबर हो गया है

विकास शर्मा राज़

आख़िर वो इज़्तिराब के दिन भी गुज़र गए

वारिस किरमानी

फूल होंटों को ग़ज़ल-ख़्वाँ देखना

तुफ़ैल बिस्मिल

इक बहाना है तुझे याद किए जाने का

तुफ़ैल बिस्मिल

काविशों से अमाँ मिले न मिले

तिलोकचंद महरूम

कम न थी सहरा से कुछ भी ख़ाना-वीरानी मिरी

तिलोकचंद महरूम

लफ़्ज़ की क़ैद से रिहा हो जा

तौक़ीर तक़ी

हवा रुकी है तो रक़्स-ए-शरर भी ख़त्म हुआ

तारिक़ क़मर

निगहबान-ए-चमन अब धूप और पानी से क्या होगा

तारिक़ मतीन

आज इतना जलाओ कि पिघल जाए मिरा जिस्म

तनवीर सिप्रा

मिरी ग़ज़ल जो नए साज़ से इबारत है

तनवीर अहमद अल्वी

शराब शहर में नीलाम हो गई होगी

तालिब हुसैन तालिब

ख़िश्त-ए-जाँ दरमियान लाने में

तालिब हुसैन तालिब

भेज कर शहर हारती है मुझे

तालिब हुसैन तालिब

तिलिस्म-ए-इश्क़ था सब उस का साथ होने तक

ताजदार आदिल

उतार लफ़्ज़ों का इक ज़ख़ीरा ग़ज़ल को ताज़ा ख़याल दे दे

तैमूर हसन

उतार लफ़्ज़ों का इक ज़ख़ीरा ग़ज़ल को ताज़ा ख़याल दे दे

तैमूर हसन

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