ग़ज़ल Poetry (page 4)

ग़म इस का कुछ नहीं है कि मैं काम आ गया

ताहिर फ़राज़

वही बे-लिबास क्यारियाँ कहीं बेल बूटों के बल नहीं

तफ़ज़ील अहमद

यादों की क़िंदील जलाना कितना अच्छा लगता है

ताबिश मेहदी

बहार आई गुल-अफ़्शानियों के दिन आए

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

खोता ही नहीं है हवस-ए-मतअम-ओ-मलबस

ताबाँ अब्दुल हई

मुझ से मत कर यार कुछ गुफ़्तार मैं रोज़े से हूँ

सय्यद ज़मीर जाफ़री

हम अगर दश्त-ए-जुनूँ में न ग़ज़ल-ख़्वाँ होते

सय्यद ज़मीर जाफ़री

अगर हम दश्त-ए-जुनूँ में न ग़ज़ल-ख़्वाँ होते

सय्यद ज़मीर जाफ़री

याद के त्यौहार में वस्ल-ओ-वफ़ा सब चाहिए

सय्यद मुनीर

ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ

सय्यद मोहम्मद जाफ़री

इश्क़ तज्दीद कर के देखते हैं

सय्यद मोहम्मद असकरी आरिफ़

ज़माने में मोहब्बत की अगर बारिश नहीं होती

सय्यद आरिफ़ अली

सीने में आग आँख सू-ए-दर लगी रहे

सय्यद अाग़ा अली महर

वाइज़-ए-शहर ख़ुदा है मुझे मा'लूम न था

सय्यद आबिद अली आबिद

किसी की इश्वा-गरी से ब-ग़ैर-ए-फ़स्ल-ए-बहार

सय्यद आबिद अली आबिद

ग़म-ए-दौराँ ग़म-ए-जानाँ का निशाँ है कि जो था

सय्यद आबिद अली आबिद

आई सहर क़रीब तो मैं ने पढ़ी ग़ज़ल

सय्यद आबिद अली आबिद

कहीं खो न जाना ज़रा दूर चल के

स्वप्निल तिवारी

अपने ख़्वाबों को इक दिन सजाते हुए

स्वप्निल तिवारी

चमन वालों को रक़्साँ-ओ-ग़ज़ल-ख़्वाँ ले के उट्ठी है

सुरूर बाराबंकवी

कोई शय है जो सनसनाती है

सुनील आफ़ताब

कोई शय है जो सनसनाती है

सुनील आफ़ताब

शायरी मज़हर-ए-अहवाल-ए-दरूं है यूँ है

सुलेमान ख़ुमार

इक तिरा दर्द है तन्हाई है रुस्वाई है

सुलैमान अहमद मानी

कि ख़ुद-नुमाई न तश्हीर चाहते हैं हम

सुहैल अख़्तर

जब शाम बढ़ी रात का चाक़ू निकल आया

सुहैल अहमद ज़ैदी

तिरी याद जो मेरे दिल में है बस उसी की जल्वागरी रही

सूफ़िया अनजुम ताज

इस तरह से तर्जुमानी कर गया

सुबहान असद

शौक़ रातों को है दरपय कि तपाँ हो जाऊँ

सिराजुद्दीन ज़फ़र

शौक़ रातों को है दर पे कि तपाँ हो जाऊँ

सिराजुद्दीन ज़फ़र

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