ग़ज़ल Poetry (page 5)

साग़र उठा के ज़ोहद को रद हम ने कर दिया

सिराजुद्दीन ज़फ़र

हम आहुवान-ए-शब का भरम खोलते रहे

सिराजुद्दीन ज़फ़र

दर-ए-मय-ख़ाना से दीवार-ए-चमन तक पहुँचे

सिराजुद्दीन ज़फ़र

रिश्ते में तिरी ज़ुल्फ़ के है जान हमारा

सिराज औरंगाबादी

कल सीं बे-कल है मिरा जी यार कूँ देखा न था

सिराज औरंगाबादी

जलव-ए-जाँ-फ़ज़ा दिखाता रह

सिराज औरंगाबादी

जान ओ दिल सीं मैं गिरफ़्तार हूँ किन का उन का

सिराज औरंगाबादी

हमारा दिलबर-ए-गुलफ़म आया

सिराज औरंगाबादी

दिल में जब आ के इश्क़ ने तेरे महल किया

सिराज औरंगाबादी

वीराँ बहुत है ख़्वाब-महल जागते रहो

सिराज अजमली

ख़ुश-जमालों की याद आती है

सिकंदर अली वज्द

जिन की आँखों में था सुरूर-ए-ग़ज़ल

सिकंदर अली वज्द

रात हुई फिर हम से इक नादानी थोड़ी सी

सिद्दीक़ मुजीबी

ज़िंदगी गुलशन में भी दुश्वार है तेरे बग़ैर

बाबू सि द्दीक़ निज़ामी

हिज्र ग़म का बयान है गोया

श्याम सुंदर लाल बर्क़

पहले हुआ जो करते थे हम वो नहीं रहे

शुजा ख़ावर

ज़रा सब्र!

शोरिश काश्मीरी

इक़बाल से हम-कलामी

शोरिश काश्मीरी

ज़िंदगी तुझ पे गिराँ है तू मरेगा कैसे

शोहरत बुख़ारी

साँस की आस निगहबाँ है ख़बर-दार रहो

शोहरत बुख़ारी

दिल तलबगार-ए-तमाशा क्यूँ था

शोहरत बुख़ारी

बे-नश्शा बहक रहा हूँ कब से

शोहरत बुख़ारी

अपनों से मुरव्वत का तक़ाज़ा नहीं करते

शोहरत बुख़ारी

ख़्वाब थे मेरे कुछ सुहाने से

शोभा कुक्कल

'मीर' का सोज़-ए-बयाँ हो तो ग़ज़ल होती है

शिव दयाल सहाब

तीर-ए-क़ातिल का ये एहसाँ रह गया

शिबली नोमानी

हंगामा है न फ़ित्ना-ए-दौराँ है आज-कल

शेरी भोपाली

नुत्क़ पलकों पे शरर हो तो ग़ज़ल होती है

शेर अफ़ज़ल जाफ़री

न हुआ पर न हुआ 'मीर' का अंदाज़ नसीब

ज़ौक़

क़ुफ़्ल-ए-सद-ख़ाना-ए-दिल आया जो तू टूट गए

ज़ौक़

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