दूरी Poetry (page 5)

रातों के अंधेरों में ये लोग अजब निकले

फ़रहत क़ादरी

नहीं होती है राह-ए-इश्क़ में आसान मंज़िल

फ़रहत नदीम हुमायूँ

था पहला सफ़र उस की रिफ़ाक़त भी नई थी

फ़रहत नदीम हुमायूँ

न दौलत की तलब थी और न दौलत चाहिए है

फ़रहत नदीम हुमायूँ

तू मिरी इब्तिदा तू मिरी इंतिहा मैं समुंदर हूँ तू साहिलों की हवा

फ़रहान सालिम

तफ़्सील मसाफ़त की

फ़हमीदा रियाज़

आहिस्ता से गुज़रो

फ़हीम शनास काज़मी

दिलों के बीच बदन की फ़सील उठा दी जाए

एज़ाज़ अफ़ज़ल

दो घड़ी साए में जलने की अज़िय्यत और है

एज़ाज़ अफ़ज़ल

ज़रा बतला ज़माँ क्या है मकाँ के उस तरफ़ क्या है

एजाज़ गुल

क़ाफ़िला उतरा सहरा में और पेश वही मंज़र आए

एजाज़ गुल

मंज़र-ए-वक़्त की यकसानी में बैठा हुआ हूँ

एजाज़ गुल

बात अब आई समझ में कि हक़ीक़त क्या थी

एहसान दरबंगावी

वफ़ा का अहद था दिल को सँभालने के लिए

एहसान दानिश

मैं जब ख़ुद से बिछड़ती हूँ

बुशरा एजाज़

ये जो चेहरों पे लिए गर्द-ए-अलम आते हैं

बेदिल हैदरी

ऐसा तह-ए-अफ़्लाक ख़राबा नहीं कोई

बशीर अहमद बशीर

वो नज़र आईना-फ़ितरत ही सही

बाक़ी सिद्दीक़ी

वुसअत-ए-चश्म को अंदोह-ए-बसारत लिक्खा

अज़्म बहज़ाद

शाम आई तो कोई ख़ुश-बदनी याद आई

अज़्म बहज़ाद

बाक़ीस्त शब-ए-फ़ित्ना

अज़ीज़ क़ैसी

जिस तरफ़ चाहूँ पहुँच जाऊँ मसाफ़त कैसी

अज़ीज़ नबील

इस बार हवाओं ने जो बेदाद-गरी की

अज़ीज़ नबील

बस रंज की है दास्ताँ उन्वान हज़ारों

अज़हर हाश्मी

गुम हुआ जाता है कोई मंज़िलों की गर्द में

अताउल हक़ क़ासमी

वो सुकून-ए-जिस्म-ओ-जाँ गिर्दाब-ए-जाँ होने को है

अताउल हक़ क़ासमी

गहरी है शब की आँच कि ज़ंजीर-ए-दर कटे

अता शाद

ये साल तूल-ए-मसाफ़त से चूर चूर गया

असरार ज़ैदी

वो शख़्स जो नज़र आता था हर किसी की तरह

असरार ज़ैदी

हर तरफ़ हद्द-ए-नज़र तक सिलसिला पानी का है

आसिम वास्ती

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