पंछी Poetry (page 3)

कोई मंज़र भी सुहाना नहीं रहने देते

फ़ारिग़ बुख़ारी

नज़्र-ए-फ़िराक़

फ़हमीदा रियाज़

इंक़िलाबी औरत

फ़हमीदा रियाज़

एक मेहमाँ का हिज्र तारी है

फ़हमी बदायूनी

दरख़्त-ए-जाँ पर अज़ाब-रुत थी न बर्ग जागे न फूल आए

एज़ाज़ अहमद आज़र

फिर वही शख़्स मिरे ख़्वाब में आया होगा

धीरेंद्र सिंह फ़य्याज़

मैं ने अपना हक़ माँगा था वो नाहक़ ही रूठ गया

दीप्ति मिश्रा

सौग़ात

दाऊद ग़ाज़ी

हल्की हल्की बूँदें बरसीं पंछी करें कलोल

चमन लाल चमन

अब के बरस भी महका महका ख़्वाब दरीचा लगता है

बुशरा ज़ैदी

तुम याद मुझे आ जाते हो

बहज़ाद लखनवी

क्या बिछड़ कर रह गया जाने भरी बरसात में

बशीर मुंज़िर

समाअ'त के लिए इक इम्तिहाँ है

बकुल देव

मुझे कहाँ मिरे अंदर से वो निकालेगा

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

काश समझदार न बनूँ

अतीया दाऊद

वक़्त ने लूटे हैं हस्ती के ख़ज़ाने कितने

अतीब एजाज़

रास्ता सुनसान था तो मुड़ के देखा क्यूँ नहीं

असलम आज़ाद

फ़क़त हर्फ़-ए-तमन्ना क्या है

असलम अंसारी

बारिश कैसी जादूगर है

अासिफ़ साक़िब

बड़े नादान थे हम रेत को आब-ए-रवाँ समझे

असअ'द बदायुनी

आज की तारीख़ में इंसाँ मुकम्मल कौन है

आराधना प्रसाद

रद्द-ए-अमल

अनवर ख़ान

अनजाने ख़्वाब की ख़ातिर क्यूँ चैन गँवाया

अंजुम अंसारी

वो नहीं आए

अमजद नजमी

मुझ को पाने के सिवा और तमन्ना क्या है

अमित शर्मा मीत

इम्बिसात-ए-अज़ली

अम्बर बहराईची

मुनाजात-ए-बेवा

अल्ताफ़ हुसैन हाली

भटका करूँगा कब तक राहों में तेरी आ कर

आलोक यादव

कभी तो डूब चले हम कभी उभरते हुए

अखिलेश तिवारी

ये किस करनी का फल होगा कैसी रुत में जागे हम

अहसन यूसुफ़ ज़ई

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