प्यार Poetry (page 17)

रास आती ही नहीं जब प्यार की शिद्दत मुझे

ग़ुलाम हुसैन साजिद

एक ख़्वाहिश है जो शायद उम्र भर पूरी न हो

ग़ुलाम हुसैन साजिद

एक घर अपने लिए तय्यार करना है मुझे

ग़ुलाम हुसैन साजिद

आइना-आसा ये ख़्वाब-ए-नीलमीं रक्खूँगा मैं

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मक़्सूद-ए-उल्फ़त

ग़ुलाम भीक नैरंग

फिर वही हम हैं ख़याल-ए-रुख़-ए-ज़ेबा है वही

ग़ुलाम भीक नैरंग

बे-नियाज़-ए-बहार सा क्यूँ है

ग़यास अंजुम

भीगी भीगी बरखा रुत के मंज़र गीले याद करो

ग़ौस सीवानी

जुनूँ में देर से ख़ुद को पुकारता हूँ मैं

ग़नी एजाज़

बेवफ़ा के वा'दे पर ए'तिबार करते हैं

ग़नी एजाज़

दूसरा कप

गीताञ्जलि राय

जाती रुत से प्यार करोगे

गौहर होशियारपुरी

अब मैं हुदूद-ए-होश-ओ-ख़िरद से गुज़र गया

गणेश बिहारी तर्ज़

साँसों की जल-तरंग पर नग़्मा-ए-इश्क़ गाए जा

गणेश बिहारी तर्ज़

माहौल साज़गार करो मैं नशे में हूँ

गणेश बिहारी तर्ज़

साहब दिलों से राह में आँखें मिला के देख

फ़ुज़ैल जाफ़री

निभेगी किस तरह दिल सोचता है

फ़ुज़ैल जाफ़री

कैसा मकान साया-ए-दीवार भी नहीं

फ़ुज़ैल जाफ़री

कैसा मकान साया-ए-दीवार भी नहीं

फ़ुज़ैल जाफ़री

है इबारत जो ग़म-ए-दिल से वो वहशत भी न थी

फ़ुज़ैल जाफ़री

उमीद की कोई चादर तो सामने आए

फ़िरदौस गयावी

तूर था का'बा था दिल था जल्वा-ज़ार-ए-यार था

फ़िराक़ गोरखपुरी

समझता हूँ कि तू मुझ से जुदा है

फ़िराक़ गोरखपुरी

इक रोज़ हुए थे कुछ इशारात ख़फ़ी से

फ़िराक़ गोरखपुरी

अब अक्सर चुप चुप से रहें हैं यूँही कभू लब खोलें हैं

फ़िराक़ गोरखपुरी

एक नज़्म

फ़ज़्ल ताबिश

हर इक दरवाज़ा मुझ पर बंद होता

फ़ज़्ल ताबिश

अच्छा हुआ मैं वक़्त के मेहवर से कट गया

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

ख़िज़ाँ में चीनी चाय की दावत

फ़े सीन एजाज़

कोई आँख चुपके चुपके मुझे यूँ निहारती है

फ़े सीन एजाज़

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