रहस्य Poetry (page 18)

मुझ को दिमाग़-ए-शेवन-ओ-आह-ओ-फ़ुग़ाँ नहीं

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

इश्क़ में ख़ूब नीं बहुत रोना

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

दर्द-ए-दिल के साथ क्या मेरे मसीहा कर दिया

गुहर खैराबादी

रह गई लुट कर बहार-ए-ज़िंदगी

गोपाल कृष्णा शफ़क़

उबल पड़ा यक-ब-यक समुंदर तो मैं ने देखा

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

मैं राज़दाँ हूँ ये कि जहाँ था वहाँ न था

ग़ुलाम मौला क़लक़

उड़ाऊँ न क्यूँ तार-तार-ए-गरेबाँ

ग़ुलाम मौला क़लक़

मातम-ए-दीद है दीदार का ख़्वाहाँ होना

ग़ुलाम मौला क़लक़

हम तो याँ मरते हैं वाँ उस को ख़बर कुछ भी नहीं

ग़ुलाम मौला क़लक़

है ख़मोशी-ए-इंतिज़ार बला

ग़ुलाम मौला क़लक़

दीदा-ए-सर्फ़-ए-इंतिज़ार है शम्अ

ग़ुलाम मौला क़लक़

ऐ ख़ार ख़ार-ए-हसरत क्या क्या फ़िगार हैं हम

ग़ुलाम मौला क़लक़

सितारा-ए-ख़्वाब से भी बढ़ कर ये कौन बे-मेहर है कि जिस ने

ग़ुलाम हुसैन साजिद

ख़ुदा-ए-बर्तर ने आसमाँ को ज़मीन पर मेहरबाँ किया है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मिरे पहलू से जो निकले वो मिरी जाँ हो कर

ग़ुलाम भीक नैरंग

किस तरह वाक़िफ़ हों हाल-ए-आशिक़-ए-जाँ-बाज़ से

ग़ुलाम भीक नैरंग

मुझे किस तरह से न हो यक़ीं कि उसे ख़िज़ाँ से गुरेज़ है

ग़ुबार भट्टी

शम्अ-रू आशिक़ को अपने यूँ जलाना चाहिए

ग़मगीन देहलवी

गरचे है तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल पर्दा-दार-ए-राज़-ए-इश्क़

ग़ालिब

न गुल-ए-नग़्मा हूँ न पर्दा-ए-साज़

ग़ालिब

महरम नहीं है तू ही नवा-हा-ए-राज़ का

ग़ालिब

लूँ वाम बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता से यक-ख़्वाब-ए-खुश वले

ग़ालिब

जिस बज़्म में तू नाज़ से गुफ़्तार में आवे

ग़ालिब

है सब्ज़ा-ज़ार हर दर-ओ-दीवार-ए-ग़म-कदा

ग़ालिब

देखना क़िस्मत कि आप अपने पे रश्क आ जाए है

ग़ालिब

चश्म-ए-ख़ूबाँ ख़ामुशी में भी नवा-पर्दाज़ है

ग़ालिब

बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे

ग़ालिब

बला से हैं जो ये पेश-ए-नज़र दर-ओ-दीवार

ग़ालिब

इस बात को वैसे तो छुपाया न गया है

गौतम राजऋषि

अभी निकलो न घर से तंग आ के

फ़िराक़ जलालपुरी

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