निर्माण Poetry (page 2)

जब कोई आलम-ए-शुहूद न था

सुहैल अख़्तर

ख़ुदा शाहिद है मेरे भूलने वाले ब-जुज़ तेरे

सिकंदर अली वज्द

तिरे आते ही सब दुनिया जवाँ मालूम होती है

सिकंदर अली वज्द

ये रोज़ ओ शब का तसलसुल रवाँ-दवाँ ही रहा

सिद्दीक़ शाहिद

दरवाज़ा कोई घर से निकलने के लिए दे

शीन काफ़ निज़ाम

ये रात कितनी भयानक है बाम-ओ-दर के लिए

शातिर हकीमी

सय्याल तसव्वुर है उबलने की तरह का

शमीम क़ासमी

ज़हरीली तख़्लीक़

शहज़ाद अहमद

कमरों में छुपने के दिन हैं और न बरहना रातें हैं

शहज़ाद अहमद

हिज्र की रात मिरी जाँ पे बनी हो जैसे

शहज़ाद अहमद

एक और साल गिरह

शहरयार

किताब गुमराह कर रही है

शहराम सर्मदी

तेरी तख़्लीक़ तिरा रंग हवाला था मिरा

शहनवाज़ ज़ैदी

सोच रहा है इतना क्यूँ ऐ दस्त-ए-बे-ताख़ीर निकाल

शाहिद कमाल

तेरे सिवा

शाहिद अख़्तर

आख़िरी क़ाफ़िला

शाहीन ग़ाज़ीपुरी

सूरज का शहर

शहाब जाफ़री

नज़्म

शबनम अशाई

रंग उड़ कर रौनक़-ए-तस्वीर आधी रह गई

सेहर इश्क़ाबादी

जहान-ए-रंग-ओ-बू में मुस्तक़िल तख़्लीक़-ए-मस्ती है

सीमाब अकबराबादी

आओ फिर गर्मी दयार-ए-इश्क़ में पैदा करें

सीमाब अकबराबादी

मुझे मुश्किल में यूँ अंदाज़ा-ए-मुश्किल नहीं होता

सय्यद एजाज़ अहमद रिज़वी

मौजा-ए-रेग-ए-रवान-ए-ग़म में बह के देखना

सरदार सलीम

आज शायद ज़िंदगी का फ़ल्सफ़ा समझा हूँ मैं

सलीम शुजाअ अंसारी

दीद के बदले सदा दीदा-ए-तर रक्खा है

सलीम फ़िगार

दीद के बदले सदा दीदा-ए-तर रक्खा है

सलीम फ़िगार

फूलों की है तख़्लीक़ कि शो'लों से बना है

सलीम बेताब

जो आँखों के तक़ाज़े हैं वो नज़्ज़ारे बनाता हूँ

सलीम अहमद

तसलसुल

सलाम मछली शहरी

राहों के ऊँच-नीच ज़रा देख-भाल के

सज्जाद बाक़र रिज़वी

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