अस्तित्व Poetry (page 5)

कहीं से चाँद कहीं से क़ुतुब-नुमा निकला

शकील आज़मी

ख़िरद फ़रेब-ए-नज़ारों की कोई बात करो

शकेब जलाली

न दिन ही चैन से गुज़रा न कोई रात मिरी

शाइक़ मुज़फ़्फ़रपुरी

जो कुछ भी मेरे पास थी दौलत निगल गई

शहज़ाद हुसैन साइल

कब तक कड़कती धूप में आँखें जलाएँ हम

शहज़ाद अहमद

मेरी ज़मीं

शहरयार

एक और साल गिरह

शहरयार

सभी को ग़म है समुंदर के ख़ुश्क होने का

शहरयार

वो बात

शहराम सर्मदी

किताब गुमराह कर रही है

शहराम सर्मदी

इस सोच में ही मरहला-ए-शब गुज़र गया

शहराम सर्मदी

मिरे ख़ुदा किसी सूरत उसे मिला मुझ से

शाहिद ज़की

जिधर भी देखिए इक रास्ता बना हुआ है

शाहिद ज़की

रग रग में मेरी फैल गया है ये कैसा ज़हर

शाहिद माहुली

ख़ुद मुझ को मेरे दस्त-ए-कमाँ-गीर से मिला

शाहिद कमाल

ख़ुद मुझ को मेरे दस्त-ए-कमाँ-गीर से मिला

शाहिद कमाल

फ़िक्र-ए-ईजाद में हूँ खोल नया दर कोई

शाहिद कमाल

ऐ ज़ौक़ अर्ज़-ए-हुनर हर्फ़-ए-ए'तिदाल में रख

शाहिद कमाल

सुकूँ का एक भी लम्हा जो दिल को मिलता है

शाहीन सिद्दीक़ी

ख़ाक-ज़ादा हूँ मगर ता-ब फ़लक जाता है

शहबाज़ ख़्वाजा

इक ऐसा वक़्त भी सहरा में आने वाला है

शहबाज़ ख़्वाजा

पर्दा पड़ा हुआ था ख़ुदी ने उठा दिया

शफ़ीक़ जौनपुरी

अजीब रुत थी बरसती हुई घटाएँ थीं

शफ़ी अक़ील

ख़्वाह मुफ़्लिसी से निकल गया या तवंगरी से निकल गया

शाद बिलगवी

नई बहार का था मुंतज़िर चमन मेरा

शबनम वहीद

वहाँ भी ज़हर-ज़बाँ काम कर गया होगा

शबनम शकील

नज़्म

शबनम अशाई

नज़्म

शबनम अशाई

नज़्म

शबनम अशाई

है कोई दर्द मुसलसल रवाँ-दवाँ मुझ में

शबाना यूसुफ़

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