ज़ीनत Poetry (page 3)

वो निगाहें क्या कहूँ क्यूँ कर रग-ए-जाँ हो गईं

अज़ीज़ लखनवी

हुस्न-ए-आलम-सोज़ ना-महदूद होना चाहिए

अज़ीज़ लखनवी

भड़क उट्ठेंगे शो'ले एक दिन दुनिया की महफ़िल में

अज़ीज़ लखनवी

निकलना ख़ुद से मुमकिन है न मुमकिन वापसी मेरी

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

फ़न अस्ल में पिन्हाँ है दिल-ए-ज़ार के अंदर

असरार अकबराबादी

मिरी हर साँस को सब नग़्मा-ए-महफ़िल समझते हैं

असर सहबाई

ख़ुलूस-ए-अल्फ़ाज़ काम आया निगाह-ए-अहल-ए-फ़ितन से पहले

अर्शी भोपाली

नए मौसम की बशारत हैं हम

अरशद महमूद नाशाद

बे-ज़बानों को भी गोयाई सिखाना चाहिए

अरशद अली ख़ान क़लक़

बदली हुई दुनिया की नज़र देख रहे हैं

अर्जुमंद बानो अफ़्शाँ

वो ग़ुंचा हूँ जो बिन खिले मुरझाए चमन में

अनीसा बेगम

शिकस्त-ए-अना

अमजद इस्लाम अमजद

मेरा कर्ब मिरी तन्हाई की ज़ीनत

अम्बर बहराईची

गीली मिट्टी हाथ में ले कर बैठा हूँ

अम्बर बहराईची

तुलू-ए-इस्लाम

अल्लामा इक़बाल

गोरिस्तान-ए-शाही

अल्लामा इक़बाल

सर-ए-तूर

अली सरदार जाफ़री

ये बेकस-ओ-बेक़रार चेहरे

अली सरदार जाफ़री

खुले हैं मश्रिक-ओ-मग़रिब की गोद में गुलज़ार

अली सरदार जाफ़री

फ़स्ल-ए-गुल फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँ जो भी हो ख़ुश-दिल रहिए

अली सरदार जाफ़री

होली

अली जव्वाद ज़ैदी

ये औरतें

अख़्तर पयामी

मुझ से मत पूछ मिरा हाल-ए-दरूँ रहने दे

अख़लाक़ बन्दवी

नई तहज़ीब

अकबर इलाहाबादी

मअ'नी को भुला देती है सूरत है तो ये है

अकबर इलाहाबादी

ख़त्म किया सबा ने रक़्स गुल पे निसार हो चुकी

अकबर इलाहाबादी

ख़ुश-रंग किस क़दर ख़स-ओ-ख़ाशाक थे कभी

अकबर अली खान अर्शी जादह

मैं ही मतलूब ख़ुद हूँ तू है अबस

अहमद हुसैन माइल

ग़ुरूर-ए-जाँ को मिरे यार बेच देते हैं

अहमद फ़राज़

परी-पैकर जो मुझ वहशी का पैराहन बनाते हैं

आग़ा हज्जू शरफ़

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