ज़ीनत Poetry (page 2)

गुलशन की फ़क़त फूलों से नहीं काँटों से भी ज़ीनत होती है

सबा अफ़ग़ानी

गुलशन की फ़क़त फूलों से नहीं काँटों से भी ज़ीनत होती है

सबा अफ़ग़ानी

वक़ार-ए-शाह-ए-ज़विल-इक्तदार देख चुके

रिन्द लखनवी

वो बर्क़-ए-नाज़ गुरेज़ाँ नहीं तो कुछ भी नहीं

रविश सिद्दीक़ी

जंगल की लकड़ियाँ

राशिद अनवर राशिद

जोश-ए-वहशत मेरे तलवों को ये ईज़ा भी सही

रशीद लखनवी

हिज्र है अब था यहीं में ज़ार हम पहलू-ए-दोस्त

रशीद लखनवी

दिला मा'शूक़ जो होता है वो सफ़्फ़ाक होता है

रशीद लखनवी

फिर उन की निगाहों के पयाम आए हुए हैं

राज कुमार सूरी नदीम

हम बाग़-ए-तमन्ना में दिन अपने गुज़ार आए

इरम लखनवी

ख़ाल-ए-रुख़्सार को दाग़-ए-मह-ए-कामिल बाँधा

हयात मदरासी

यक़ीन से बाहर बिखरा सच

हमीदा शाहीन

इक मुजस्सम दर्द हूँ इक आह हूँ

हमदुन उसमानी

शब-ए-वस्ल है बहस हुज्जत अबस

हफ़ीज़ जौनपुरी

शब कि मुतरिब था शराब-ए-नाब थी पैमाना था

हबीब मूसवी

एक हुस्न-फ़रोश लड़की के नाम

गोपाल मित्तल

जल्वा-ए-हुस्न अगर ज़ीनत-ए-काशाना बने

ग़ुबार भट्टी

फ़ारिग़ मुझे न जान कि मानिंद-ए-सुब्ह-ओ-मेहर

ग़ालिब

तेरी ख़ातिर ये फ़ुसूँ हम ने जगा रक्खा है

फ़ारिग़ बुख़ारी

रग-ओ-पै में सरायत कर गया वो

फ़रीद परबती

काग़ज़ के फूल

फ़रीद इशरती

कुछ ज़िंदगी में लुत्फ़ का सामाँ नहीं रहा

फ़ैज़ी निज़ाम पुरी

कतबा

एजाज़ फ़ारूक़ी

रंग-ए-तहज़ीब-ओ-तमद्दुन के शनासा हम भी हैं

एहसान दानिश

तेरी अँखियाँ के तसव्वुर में सदा मस्ताना हूँ

दाऊद औरंगाबादी

ख़ाक-ए-हिंद

चकबस्त ब्रिज नारायण

अगर दुश्मन की थोड़ी सी मरम्मत और हो जाती

बूम मेरठी

यूँ खुल गया है राज़-ए-शिकस्त-ए-तलब कभी

बशीर ज़ैदी असीर

किरदार ही से ज़ीनत-ए-अफ़्लाक हो गए

बनो ताहिरा सईद

कैफ़ियत-ए-दिल-ए-हज़ीं हम से नहीं बयाँ हुई

बीएस जैन जौहर

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