शब कि मुतरिब था शराब-ए-नाब थी पैमाना था

शब कि मुतरिब था शराब-ए-नाब थी पैमाना था

वो परी-वश क्या न था गोया कि जो कुछ था न था

सोज़-ए-दिल से लब ये हर दम नाला बेताबाना था

हिज्र-ए-साक़ी में किसी पहलू क़रार असला न था

जल्वा-गर दिल में ख़याल-ए-आरिज़-ए-जानाना था

घर की ज़ीनत थी कि ज़ीनत-बख़्श साहब-ख़ाना था

क्या करूँ अब मुब्तला हूँ आप अपने हाल में

दी थी नेमत उस ने जब लब पर मिरे शुक्राना था

शोहरा-ए-आफ़ाक़ होती मेरी अज़-ख़ुद-रफ़्तगी

ख़ैरियत गुज़री कि आँखों से तुझे देखा न था

फ़स्ल-ए-गुल में छोड़ता मय देख कर माह-ए-सियाम

कुछ जुनूँ मुझ को न था वहशत न थी सौदा न था

क्या कहूँ डर ये है वो लैला-अदा रुस्वा न हो

वर्ना मजनूँ से भी कुछ बढ़ कर मेरा अफ़्साना न था

गर नज़ाकत में न होता मिस्ल-ए-तार-ए-अंकबूत

ख़ूब उल्फ़त से ज़माना में कोई रिश्ता न था

यूँ ज़ईफ़ी आ गई गोया अज़ल से थे ज़ईफ़

और शबाब ऐसा गया जैसे कभी आया न था

है यक़ीं आशिक़ तुम्हारा मर गया हो लो ख़बर

मैं ने कल देखा था जा कर हाल कुछ अच्छा न था

नीम-बाज़ आँखें तुम्हारा नाम था विर्द-ए-ज़बाँ

ज़ख़्म-ए-दिल पर हाथ था लब पर मगर शिकवा न था

बख़्त की बरगश्तगी गुज़री है हद से ऐ 'हबीब'

देखते हैं उन के तलवे जिन का मुँह देखा न था

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