जैसे हो उम्र भर का असासा ग़रीब का
कुछ इस तरह से मैं ने सँभाले तुम्हारे ख़त
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तो मैं भी ख़ुश हूँ कोई उस से जा के कह देना
समुंदर में उतरता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं
हर इक मुफ़लिस के माथे पर अलम की दास्तानें हैं
हज़ारों मौसमों की हुक्मरानी है मिरे दिल पर
हर एक मौसम में रौशनी सी बिखेरते हैं
उदास रातों में तेज़ कॉफ़ी की तल्ख़ियों में
जो तू नहीं है तो ये मुकम्मल न हो सकेंगी
इस जुदाई में तुम अंदर से बिखर जाओगे
आँखों में चुभ गईं तिरी यादों की किर्चियाँ
कितनी ज़ुल्फ़ें उड़ीं कितने आँचल उड़े चाँद को क्या ख़बर
मुझे ख़बर थी कि अब लौट कर न आऊँगा