इस जुदाई में तुम अंदर से बिखर जाओगे
किसी मा'ज़ूर को देखोगे तो याद आऊँगा
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तुम मिरी आँख के तेवर न भुला पाओगे
हज़ारों मौसमों की हुक्मरानी है मिरे दिल पर
कौन कहता है मुलाक़ात मिरी आज की है
तुम्हारा नाम लिखने की इजाज़त छिन गई जब से
मुझे ख़बर थी कि अब लौट कर न आऊँगा
हर एक मौसम में रौशनी सी बिखेरते हैं
हर इक मुफ़लिस के माथे पर अलम की दास्तानें हैं
उदास रातों में तेज़ कॉफ़ी की तल्ख़ियों में
कैसा मफ़्तूह सा मंज़र है कई सदियों से
दुख दर्द में हमेशा निकाले तुम्हारे ख़त
कितनी ज़ुल्फ़ें उड़ीं कितने आँचल उड़े चाँद को क्या ख़बर