मुझे ख़बर थी कि अब लौट कर न आऊँगा
सो तुझ को याद किया दिल पे वार करते हुए
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दुख दर्द में हमेशा निकाले तुम्हारे ख़त
तुम्हारा नाम लिखने की इजाज़त छिन गई जब से
उदास रातों में तेज़ कॉफ़ी की तल्ख़ियों में
तो मैं भी ख़ुश हूँ कोई उस से जा के कह देना
कौन कहता है मुलाक़ात मिरी आज की है
हर एक मौसम में रौशनी सी बिखेरते हैं
हर इक मुफ़लिस के माथे पर अलम की दास्तानें हैं
आँखों में चुभ गईं तिरी यादों की किर्चियाँ
जो तू नहीं है तो ये मुकम्मल न हो सकेंगी
समुंदर में उतरता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं
कितनी ज़ुल्फ़ें उड़ीं कितने आँचल उड़े चाँद को क्या ख़बर