कहानी Poetry (page 6)

दिन ने इतना जो मरीज़ाना बना रक्खा है

फ़रहत एहसास

अफ़्साना-ए-शब-रंग

फ़रीद इशरती

मर के टूटा है कहीं सिलसिला-क़ैद-ए-हयात

फ़ानी बदायुनी

जी ढूँढता है घर कोई दोनों जहाँ से दूर

फ़ानी बदायुनी

जल्वा-ए-इश्क़ हक़ीक़त थी हुस्न-ए-मजाज़ बहाना था

फ़ानी बदायुनी

दिल की काया ग़म ने वो पल्टी कि तुझ सा बन गया

फ़ानी बदायुनी

झूटी ही तसल्ली हो कुछ दिल तो बहल जाए

फ़ना निज़ामी कानपुरी

हम आगही-ए-इश्क़ का अफ़्साना कहेंगे

फ़ना निज़ामी कानपुरी

तेरे दर से न उठा हूँ न उठूँगा ऐ दोस्त

फ़ना बुलंदशहरी

जल्वा जो तिरे रुख़ का एहसास में ढल जाए

फ़ना बुलंदशहरी

रक़ीब से!

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

नुसख़ा-ए-उल्फ़त मेरा

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

चुप खड़े हैं दरमियान-ए-का'बा-ओ-बुत-ख़ाना हम

एजाज़ वारसी

इश्क़ की दुनिया में इक हंगामा बरपा कर दिया

एहसान दानिश

चोर-साहिब से दरख़्वास्त

दिलावर फ़िगार

रूह-ए-आवारा

दाऊद ग़ाज़ी

दिल कूँ दिलदार के नियाज़ करे

दाऊद औरंगाबादी

वाए नादानी कि वक़्त-ए-मर्ग ये साबित हुआ

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

मदरसा या दैर था या काबा या बुत-ख़ाना था

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

मदरसा या दैर था या काबा या बुत-ख़ाना था

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

मुझे ऐ अहल-ए-काबा याद क्या मय-ख़ाना आता है

दाग़ देहलवी

दौर-ए-निगाह-ए-साक़ी-ए-मस्ताना एक है

चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी

हुब्ब-ए-क़ौमी

चकबस्त ब्रिज नारायण

पूछते हैं बज़्म में सुन कर वो अफ़्साना मिरा

ब्रहमा नन्द जलीस

दास्तान-ए-शमअ' थी या क़िस्सा-ए-परवाना था

ब्रहमा नन्द जलीस

नज़र आता है वो जैसा नहीं है

बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन

है ख़िरद-मंदी यही बा-होश दीवाना रहे

बहज़ाद लखनवी

फ़रियाद है अब लब पर जब अश्क-फ़िशानी थी

बहज़ाद लखनवी

हमारी ज़िंदगी तो मुख़्तसर सी इक कहानी थी

बेदम शाह वारसी

न मेहराब-ए-हरम समझे न जाने ताक़-ए-बुत-ख़ाना

बेदम शाह वारसी

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