आवाज Poetry (page 40)

सुन रहा हूँ अभी तक मैं अपनी ही आवाज़ की बाज़गश्त

अब्बास ताबिश

उसे मैं ने नहीं देखा

अब्बास ताबिश

अधूरी नज़्म

अब्बास ताबिश

वो चाँद हो कि चाँद सा चेहरा कोई तो हो

अब्बास ताबिश

तेरी रूह में सन्नाटा है और मिरी आवाज़ में चुप

अब्बास ताबिश

तेरी आँखों से अपनी तरफ़ देखना भी अकारत गया

अब्बास ताबिश

कोई मिलता नहीं ये बोझ उठाने के लिए

अब्बास ताबिश

झिलमिल से क्या रब्त निकालें कश्ती की तक़दीरों का

अब्बास ताबिश

हम ने चुप रह के जो एक साथ बिताया हुआ है

अब्बास ताबिश

दर-ए-उफ़ुक़ पे रक़म रौशनी का बाब करें

अब्बास ताबिश

हर तरफ़ शोर-ए-फ़ुग़ाँ है कोई सुनता ही नहीं

अब्बास रिज़वी

चुप-चाप गुज़र जाओ

अब्बास अतहर

वफ़ा और इश्क़ के रिश्ते बड़े ख़ुश-रंग होते हैं

आज़िम कोहली

सब्र पर दिल को तो आमादा किया है लेकिन

आसी उल्दनी

रोने को बहुत रोए बहुत आह-ओ-फ़ुग़ाँ की

आशुफ़्ता चंगेज़ी

बाहर भी अब अंदर जैसा सन्नाटा है

आनिस मुईन

झिलमिलाते हुए दिन-रात हमारे ले कर

आलोक श्रीवास्तव

धड़कते साँस लेते रुकते चलते मैं ने देखा है

आलोक श्रीवास्तव

मिरी ख़ामोशियों की झील में फिर

आदिल रज़ा मंसूरी

दो अजनबी

आदिल रज़ा मंसूरी

वहाँ शायद कोई बैठा हुआ है

आदिल रज़ा मंसूरी

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