आवाज Poetry (page 3)

छोटी सी बच्ची

ज़ीशान साहिल

बच्चों की साइकल

ज़ीशान साहिल

इश्क़ की दीवानगी मिट जाएगी

ज़ीशान साहिल

मैं ने बेताबाना बढ़ कर दश्त में आवाज़ दी

ज़ेब ग़ौरी

पहले मुझ को भी ख़याल-ए-यार का धोका हुआ

ज़ेब ग़ौरी

क़ैस कहता था यही फ़िक्र है दिन-रात मुझे

ज़रीफ़ लखनवी

मैं चुप रहा तो आँख से आँसू उबल पड़े

ज़करिय़ा शाज़

संग किसी के चलते जाएँ ध्यान किसी का रक्खें

ज़करिय़ा शाज़

मुझ तक निगाह आई जो वापस पलट गई

ज़करिय़ा शाज़

चेहरे जितने रूप बदलता रहता है

ज़का सिद्दीक़ी

इस अदा से इश्क़ का आग़ाज़ होना चाहिए

ज़ेब बरैलवी

लाख ऊँची सही ऐ दोस्त किसी की आवाज़

ज़ाहिद कमाल

क़सम उस बदन की

ज़ाहिद हसन

नज़्म

ज़ाहिद डार

सूखे हुए पत्तों में आवाज़ की ख़ुशबू है

ज़हीर सिद्दीक़ी

ख़्वाब-गाहों से अज़ान-ए-फ़ज्र टकराती रही

ज़हीर सिद्दीक़ी

कोई दस्तक कोई आहट न शनासा आवाज़

ज़हीर काश्मीरी

अब है क्या लाख बदल चश्म-ए-गुरेज़ाँ की तरह

ज़हीर काश्मीरी

साल-हा-साल से ख़ामोश थे गहरे पानी

ज़फ़र इक़बाल

रोक रखना था अभी और ये आवाज़ का रस

ज़फ़र इक़बाल

पूरी आवाज़ से इक रोज़ पुकारूँ तुझ को

ज़फ़र इक़बाल

यूँ भी होता है कि यक दम कोई अच्छा लग जाए

ज़फ़र इक़बाल

ये नहीं कहता कि दोबारा वही आवाज़ दे

ज़फ़र इक़बाल

लब पे तकरीम-ए-तमन्ना-ए-सुबुक-पाई है

ज़फ़र इक़बाल

ख़ुश बहुत फिरते हैं वो घर में तमाशा कर के

ज़फ़र इक़बाल

खींच लाई है यहाँ लज़्ज़त-ए-आज़ार मुझे

ज़फ़र इक़बाल

हम ने आवाज़ न दी बर्ग ओ नवा होते हुए

ज़फ़र इक़बाल

एक ही नक़्श है जितना भी जहाँ रह जाए

ज़फ़र इक़बाल

बिखर बिखर गए अल्फ़ाज़ से अदा न हुए

ज़फ़र इक़बाल

ख़ुशा ऐ ज़ख़्म कि सूरत नई निकलती है

ज़फ़र अज्मी

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