मैं चुप रहा तो आँख से आँसू उबल पड़े
जब बोलने लगा मिरी आवाज़ फट गई
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'शाज़' ख़ुद में ही गँवाए हुए ख़ुद को रखना
उस का ख़याल दिल में घड़ी दो घड़ी रहे
मोहब्बत एक ऐसा रास्ता है
इक जैसे हैं दुख सुख सब के इक जैसी उम्मीदें
उस से आगे जाओगे तब जानेंगे
संग किसी के चलते जाएँ ध्यान किसी का रक्खें
ये मोहब्बत है इसे देख तमाशा न बना
एक मुद्दत मैं ख़मोशी से रहा महव-ए-कलाम
जाने क्या बात है पूरे ही नहीं होते हैं
ज़माने हो गए हैं चलते चलते
किस क़यामत की घुटन तारी है
छाँव से उस ने दामन भर के रक्खा है