उस से आगे जाओगे तब जानेंगे
मंज़िल तक तो रास्ता तुम को लाया है
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संग किसी के चलते जाएँ ध्यान किसी का रक्खें
तअल्लुक़ ही नहीं है जिन से मेरा
ये जो बिफरे हुए धारे लिए फिरता हूँ मैं
हम तुझ से कोई बात भी करने के नहीं थे
ऐ गर्दिश-ए-अय्याम हमें रंज बहुत है
कैसे कह दूँ बीच अपने दीवार है जब
एक मुद्दत मैं ख़मोशी से रहा महव-ए-कलाम
खोया हुआ था हासिल होने वाला हूँ
इक जैसे हैं दुख सुख सब के इक जैसी उम्मीदें
क्या नज़ारा था मेरी आँखों में
मुझ तक निगाह आई जो वापस पलट गई
जाने क्या बात है पूरे ही नहीं होते हैं