कैसे कह दूँ बीच अपने दीवार है जब
छोड़ने कोई दरवाज़े तक आया है
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मोहब्बत एक ऐसा रास्ता है
अपने ही बस पीछे भागता रहता हूँ
छाँव से उस ने दामन भर के रक्खा है
दुख न सहने की सज़ाओं में घिरा रहता है
जब भी घर के अंदर देखने लगता हूँ
संग किसी के चलते जाएँ ध्यान किसी का रक्खें
सिर्फ़ हम ही तो नहीं टूटे हैं
किस क़यामत की घुटन तारी है
मुझ तक निगाह आई जो वापस पलट गई
उन को भी उतारा है बड़े शौक़ से हम ने
ये अलग बात कि चलते रहे सब से आगे