अपने ही बस पीछे भागता रहता हूँ
ख़ुद को ही बस आगे नज़र के रक्खा है
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खोया हुआ था हासिल होने वाला हूँ
हम तुझ से कोई बात भी करने के नहीं थे
फाँदनी पड़ गई काँटों से भरी बाड़ हमें
जब भी घर के अंदर देखने लगता हूँ
आख़िर ये नाकाम मोहब्बत काम आई
कुछ भी देखा नहीं था मैं ने जब
उस से आगे जाओगे तब जानेंगे
किस क़यामत की घुटन तारी है
'शाज़' ख़ुद में ही गँवाए हुए ख़ुद को रखना
सिर्फ़ हम ही तो नहीं टूटे हैं
ये अलग बात कि चलते रहे सब से आगे