फाँदनी पड़ गई काँटों से भरी बाड़ हमें
जितने पैग़ाम थे फूलों की ज़बानी आए
Ahmad Faraz
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धूप सरों पर और दामन में साया है
देखो घिर कर बादल आ भी सकता है
छाँव से उस ने दामन भर के रक्खा है
किस क़यामत की घुटन तारी है
मोहब्बत एक ऐसा रास्ता है
हम तुझ से कोई बात भी करने के नहीं थे
कहाँ दिन रात में रक्खा हुआ हूँ
एक मुद्दत मैं ख़मोशी से रहा महव-ए-कलाम
इक जैसे हैं दुख सुख सब के इक जैसी उम्मीदें
उस का ख़याल दिल में घड़ी दो घड़ी रहे
अपने ही बस पीछे भागता रहता हूँ