'शाज़' ख़ुद में ही गँवाए हुए ख़ुद को रखना
हाथ जब तक न कोई अपनी निशानी आए
Rahat Indori
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Gulzar
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Habib Jalib
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(895) Peoples Rate This
एक मुद्दत मैं ख़मोशी से रहा महव-ए-कलाम
अपने ही बस पीछे भागता रहता हूँ
ये अलग बात कि चलते रहे सब से आगे
उतरें गहराई में तब ख़ाक से पानी आए
कुछ भी देखा नहीं था मैं ने जब
जब भी घर के अंदर देखने लगता हूँ
देखो घिर कर बादल आ भी सकता है
हम तुझ से कोई बात भी करने के नहीं थे
जाने क्या बात है पूरे ही नहीं होते हैं
छोड़ आया हूँ पीछे सब आवाज़ों को
खोया हुआ था हासिल होने वाला हूँ