ये अलग बात कि चलते रहे सब से आगे
वर्ना देखा ही नहीं तेरी तलब से आगे
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उन को भी उतारा है बड़े शौक़ से हम ने
क्या नज़ारा था मेरी आँखों में
ज़माने हो गए हैं चलते चलते
उस से आगे जाओगे तब जानेंगे
किस क़यामत की घुटन तारी है
ये कैसे मोड़ पर मैं आ गया हूँ
ये मोहब्बत है इसे देख तमाशा न बना
एक मुद्दत मैं ख़मोशी से रहा महव-ए-कलाम
हम तुझ से कोई बात भी करने के नहीं थे
फाँदनी पड़ गई काँटों से भरी बाड़ हमें
जब भी घर के अंदर देखने लगता हूँ
दुख न सहने की सज़ाओं में घिरा रहता है