ज़माने हो गए हैं चलते चलते
कहाँ जाता ये दिल का रास्ता है
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जब भी घर के अंदर देखने लगता हूँ
फाँदनी पड़ गई काँटों से भरी बाड़ हमें
कुछ भी देखा नहीं था मैं ने जब
धूप सरों पर और दामन में साया है
कैसे कह दूँ बीच अपने दीवार है जब
खोया हुआ था हासिल होने वाला हूँ
उतरें गहराई में तब ख़ाक से पानी आए
छाँव से उस ने दामन भर के रक्खा है
मोहब्बत एक ऐसा रास्ता है
खिड़की तो 'शाज़' बंद मैं करता हूँ बार बार