कुछ भी देखा नहीं था मैं ने जब
हर नज़ारा था मेरी आँखों में
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छोड़ आया हूँ पीछे सब आवाज़ों को
एक मुद्दत मैं ख़मोशी से रहा महव-ए-कलाम
दुख न सहने की सज़ाओं में घिरा रहता है
उस का ख़याल दिल में घड़ी दो घड़ी रहे
जब भी घर के अंदर देखने लगता हूँ
ये अलग बात कि चलते रहे सब से आगे
हम तुझ से कोई बात भी करने के नहीं थे
मैं चुप रहा तो आँख से आँसू उबल पड़े
तअल्लुक़ ही नहीं है जिन से मेरा
फाँदनी पड़ गई काँटों से भरी बाड़ हमें
सिर्फ़ हम ही तो नहीं टूटे हैं