जब भी घर के अंदर देखने लगता हूँ
खिड़की खोल के बाहर देखने लगता हूँ
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उतरें गहराई में तब ख़ाक से पानी आए
संग किसी के चलते जाएँ ध्यान किसी का रक्खें
मुझ तक निगाह आई जो वापस पलट गई
उन को भी उतारा है बड़े शौक़ से हम ने
उस का ख़याल दिल में घड़ी दो घड़ी रहे
सिर्फ़ हम ही तो नहीं टूटे हैं
कहाँ दिन रात में रक्खा हुआ हूँ
फाँदनी पड़ गई काँटों से भरी बाड़ हमें
ज़माने हो गए हैं चलते चलते
उस से आगे जाओगे तब जानेंगे
छाँव से उस ने दामन भर के रक्खा है
धूप सरों पर और दामन में साया है