बेबसी Poetry (page 4)

मिरी क़ुर्बतों की ख़ातिर यूँही बे-क़रार होता

आलोक यादव

बम्बई

अली सरदार जाफ़री

दर-ए-शही से दर-ए-गदाई पे आ गया हूँ

अली मुज़म्मिल

अँगूठी

अख़्तर शीरानी

ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर

अख़्तर शीरानी

दिल ही रह-ए-तलब में न खोना पड़ा मुझे

अख़तर मुस्लिमी

शब-ए-ज़ुल्मत

अख़लाक़ अहमद आहन

महबूबा और मौत

अख़लाक़ अहमद आहन

ग़ुबार-ए-जहाँ में छुपे बा-कमालों की सफ़ देखता हूँ

ऐन ताबिश

कभी जो मिल न सकी उस ख़ुशी का हासिल है

ऐन इरफ़ान

रिश्ता-ए-दिल उसी से मिलता है

अहमद निसार

ये दास्तान-ए-ग़म-ए-दिल कहाँ कही जाए

अहमद राही

कभी तिरी कभी अपनी हयात का ग़म है

अहमद राही

कभी हयात का ग़म है कभी तिरा ग़म है

अहमद राही

किस का शोअ'ला जल रहा है शो'लगी से मावरा

अहमद हमेश

काया का कर्ब

आफ़ताब इक़बाल शमीम

हिसार-ए-दीद में रोईदगी मालूम होती है

अफ़रोज़ आलम

बेबसी की धूप है ग़मगीन क्या

आदिल हयात

वही ना-सबूरी-ए-आरज़ू वही नक़्श-ए-पा वही जादा है

अदा जाफ़री

न बाम-ओ-दश्त न दरिया न कोहसार मिले

अदा जाफ़री

ख़ामुशी से हुई फ़ुग़ाँ से हुई

अदा जाफ़री

फ़साद के ब'अद

अब्दुल अहद साज़

वही दर्द है वही बेबसी तिरे गाँव में मिरे शहर में

अब्बास दाना

उन के सितम भी कह नहीं सकते किसी से हम

आले रज़ा रज़ा

उन के सितम भी कह नहीं सकते किसी से हम

आले रज़ा रज़ा

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