बेबसी Poetry (page 3)

ख़ुमार-ए-शब में तिरा नाम लब पे आया क्यूँ

फ़ाज़िल जमीली

सुना है लोग वहाँ मुझ से ख़ार खाते हैं

फ़ारूक़ नाज़की

अजीब रंग सा चेहरों पे बे-कसी का है

फ़ारूक़ नाज़की

और ख़ुदा ख़ामोश था

फ़हीम शनास काज़मी

रात

दाऊद ग़ाज़ी

उन्हें ढूँडो

बुशरा एजाज़

जब आया ईद का दिन घर में बेबसी की तरह

बिस्मिल साबरी

सहर हुई तो ख़यालों ने मुझ को घेर लिया

बिस्मिल साबरी

न चिलमनों की हसीं सरसराहटें होंगी

बेकल उत्साही

फ़स्ल-ए-गुल कब लुटी नहीं मालूम

बेकल उत्साही

मैं बोलता हूँ तो इल्ज़ाम है बग़ावत का

बशीर बद्र

रात दिन इक बेबसी ज़िंदा रही

बलवान सिंह आज़र

आँसुओं से लिख रहे हैं बेबसी की दास्ताँ

अज़्म शाकरी

तीरगी में सुब्ह की तनवीर बन जाएँगे हम

अज़्म शाकरी

हमारी बेबसी शहरों की दीवारों पे चिपकी है

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

अलावा इक चुभन के क्या है ख़ुद से राब्ता मेरा

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

ये अपनी बेबसी है या कि अपनी बे-हिसी यारो

अज़ीज़ अन्सारी

हम उस को भूल बैठे हैं अँधेरे हम पे तारी हैं

अज़ीज़ अन्सारी

कैसे दुनिया का जाएज़ा किया जाए

अज़हर फ़राग़

तुम्हारे पास रहें हम तो मौत भी क्या है

आज़ाद गुलाटी

इश्क़ क्या है बेबसी है बेबसी की बात कर

औरंगज़ेब

मोहब्बतें भी लिखी हुई हैं अदावतें भी लिखी हुई हैं

अतहर सलीमी

फिर सदा-ए-मोहब्बत सुनी है अभी

अतीक़ुर्रहमान सफ़ी

ये सोचा ही नहीं था तिश्नगी में

आसिमा ताहिर

कह तो सकता हूँ मगर मजबूर कर सकता नहीं

अनवर शऊर

इत्तिफ़ाक़ अपनी जगह ख़ुश-क़िस्मती अपनी जगह

अनवर शऊर

ब'अद-अज़-मर्ग

अनवर सेन रॉय

बदल चुके हैं सब अगली रिवायतों के निसाब

अंजुम ख़लीक़

नहीं कुछ इंतिहा अफ़्सुर्दगी की

अमजद नजमी

जो पूछते हैं कि ये इश्क़-ओ-आशिक़ी क्या है

अमजद नजमी

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