हसन Poetry (page 42)

शब ख़ुमार-ए-शौक़-ए-साक़ी रुस्तख़ेज़-अंदाज़ा था

ग़ालिब

सर-गश्तगी में आलम-ए-हस्ती से यास है

ग़ालिब

रफ़्तार-ए-उम्र क़त-ए-रह-ए-इज़्तिराब है

ग़ालिब

पए-नज़्र-ए-करम तोहफ़ा है शर्म-ए-ना-रसाई का

ग़ालिब

नाला जुज़ हुस्न-ए-तलब ऐ सितम-ईजाद नहीं

ग़ालिब

न लेवे गर ख़स-ए-जौहर तरावत सब्ज़ा-ए-ख़त से

ग़ालिब

जब तक दहान-ए-ज़ख़्म न पैदा करे कोई

ग़ालिब

है किस क़दर हलाक-ए-फ़रेब-ए-वफ़ा-ए-गुल

ग़ालिब

है आरमीदगी में निकोहिश बजा मुझे

ग़ालिब

गिला है शौक़ को दिल में भी तंगी-ए-जा का

ग़ालिब

गर तुझ को है यक़ीन-ए-इजाबत दुआ न माँग

ग़ालिब

दिल से तिरी निगाह जिगर तक उतर गई

ग़ालिब

दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ

ग़ालिब

बज़्म-ए-शाहंशाह में अशआर का दफ़्तर खुला

ग़ालिब

अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा

ग़ालिब

यहाँ कौन इस के सिवा रह गया

गौहर होशियारपुरी

समन-बरों से चमन दौलत-ए-नुमू माँगे

गौहर होशियारपुरी

जिस्म तो मिट्टी में मिलता है यहीं मरने के बाद

गणेश बिहारी तर्ज़

सर किया ज़ुल्फ़ की शब को तो सहर तक पहुँचे

ग़फ़्फ़ार बाबर

नौमीद करे दिल को न मंज़िल का पता दे

फ़ुज़ैल जाफ़री

तसव्वुर में जमाल-ए-रू-ए-ताबाँ ले के चलता हूँ

फ़ितरत अंसारी

निगाह-ए-हुस्न की तासीर बन गया शायद

फ़ितरत अंसारी

करम के नाम पे उन का इ'ताब चाहते हैं

फ़ितरत अंसारी

दामन-ए-हुस्न में हर अश्क-ए-तमन्ना रख दो

फ़ितरत अंसारी

शाम भी थी धुआँ धुआँ हुस्न भी था उदास उदास

फ़िराक़ गोरखपुरी

मेरी घुट्टी में पड़ी थी हो के हल उर्दू ज़बाँ

फ़िराक़ गोरखपुरी

किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी

फ़िराक़ गोरखपुरी

बहुत हसीन है दोशीज़गी-ए-हुस्न मगर

फ़िराक़ गोरखपुरी

शाम-ए-अयादत

फ़िराक़ गोरखपुरी

हिण्डोला

फ़िराक़ गोरखपुरी

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