हसन Poetry (page 44)

काबा भी घर अपना है सनम-ख़ाना भी अपना

फ़िगार उन्नावी

तुम हरीम-ए-नाज़ में बैठे हो बेगाने बने

फ़िगार उन्नावी

तूफ़ाँ से बच के दामन-ए-साहिल में रह गया

फ़िगार उन्नावी

कुछ काम तो आया दिल-ए-नाकाम हमारा

फ़िगार उन्नावी

जफ़ा-ए-यार को हम लुत्फ़-ए-यार कहते हैं

फ़िगार उन्नावी

हस्ती इक नक़्श-ए-इनइकासी है

फ़िगार उन्नावी

ग़म-ए-जानाँ से रंगीं और कोई ग़म नहीं होता

फ़िगार उन्नावी

चमन अपने रंग में मस्त है कोई ग़म-गुसार-ए-दिगर नहीं

फ़िगार उन्नावी

ख़ुमार-ए-शब में तिरा नाम लब पे आया क्यूँ

फ़ाज़िल जमीली

कोहसारों में नहीं है कि बयाबाँ में नहीं

फ़ाज़िल अंसारी

बशर की ज़ात में शर के सिवा कुछ और नहीं

फ़ाज़िल अंसारी

ख़ाक में मुझ को मिरी जान मिला रक्खा है

फ़ज़ल हुसैन साबिर

वो मेल-जोल हुस्न ओ बसीरत में अब कहाँ

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

चंद साँसें हैं मिरा रख़्त-ए-सफ़र ही कितना

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

अच्छा हुआ मैं वक़्त के मेहवर से कट गया

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

कोई आँख चुपके चुपके मुझे यूँ निहारती है

फ़े सीन एजाज़

उस की गली में ज़र्फ़ से बढ़ कर मिला मुझे

फ़व्वाद अहमद

क्यूँ मसाफ़त में न आए याद अपना घर मुझे

फ़ौक़ लुधियानवी

सितारों की तरह अल्फ़ाज़ की ज़ौ बढ़ती जाती है

फ़सीह अकमल

किताबों से न दानिश की फ़रावानी से आया है

फ़सीह अकमल

अदा हुआ न क़र्ज़ और वजूद ख़त्म हो गया

फ़रियाद आज़र

हाँ कभी रूह को नख़चीर नहीं कर सकता

फ़रताश सय्यद

दयार-ए-फ़िक्र-ओ-हुनर को निखारने वाला

फ़र्रुख़ ज़ोहरा गिलानी

तारे शुमार करते हैं रो रो के रात भर

फ़ारूक़ अंजुम

अब धूप मुक़द्दर हुई छप्पर न मिलेगा

फ़ारूक़ अंजुम

देखे कोई जो चाक-ए-गरेबाँ के पार भी

फ़ारिग़ बुख़ारी

जो तुझे पैकर-ए-सद-नाज़-ओ-अदा कहते हैं

फ़रहत नदीम हुमायूँ

वो बहकी निगाहें क्या कहिए वो महकी जवानी क्या कहिए

फ़रहत कानपुरी

कभी इस रौशनी की क़ैद से बाहर भी निकलो तुम

फ़रहत एहसास

तराना-ए-रेख़्ता

फ़रहत एहसास

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