चेहरा Poetry (page 13)

मैं जब भी क़त्ल हो कर देखता हूँ

राज़ी अख्तर शौक़

ख़्वाबों की इक भीड़ लगी है जिस्म बेचारा नींद में है

राज़ी अख्तर शौक़

जभी तो ज़ख़्म भी गहरा नहीं है

राज़ी अख्तर शौक़

दिन का मलाल शाम की वहशत कहाँ से लाएँ

राज़ी अख्तर शौक़

वबाल-ए-जान हर इक बाल है म्याँ

रज़ा अज़ीमाबादी

गुमाँ हद्द-ए-नज़र तक क्या था लेकिन क्या नज़र आया

रौनक़ नईम

तुम भी इस सूखते तालाब का चेहरा देखो

रउफ़ रज़ा

ता-ब-कै मंज़िल-ब-मंज़िल हम मुसाफ़िर भागते

रऊफ़ ख़ैर

पत्ते तमाम हल्क़ा-ए-सरसर में रह गए

रऊफ़ ख़ैर

रात आख़िर हो सितम-पेशों पे ऐसा भी नहीं

राशिद तराज़

कोई रस्ता कोई रहरव कोई अपना नहीं मिलता

राशिद क़य्यूम अनसर

अब ज़ीस्त मिरे इम्कान में है

राशिद नूर

जो क़र्ज़ मुझ पे है वो बोझ उतारता जाऊँ

राशिद मुफ़्ती

ग़ौर करो तो चेहरा चेहरा ओढ़े गहरे गहरे रंग

राशिद मतीन

मुंतज़िर आँखों में जमता ख़ूँ का दरिया देखते

राशिद आज़र

मिरी जबीं का मुक़द्दर कहीं रक़म भी तो हो

रशीद क़ैसरानी

कौन कहता है तिरे दिल में उतर जाऊँगा

रशीद क़ैसरानी

बात सूरज की कोई आज बनी है कि नहीं

रशीद क़ैसरानी

आया उफ़ुक़ की सेज तक आ कर पलट गया

रशीद क़ैसरानी

सवाद-ए-शाम पे सूरज उतरने वाला है

रशीद निसार

मैं चोब-ए-ख़ुश्क सही वक़्त का हूँ सहरा में

रशीद निसार

चाँद होता नहीं हर इक चेहरा

रसा चुग़ताई

कहाँ जाते हैं आगे शहर-ए-जाँ से

रसा चुग़ताई

है लेकिन अजनबी ऐसा नहीं है

रसा चुग़ताई

अगर ये चेहरा यूँही गर्द से अटा रहेगा

राना आमिर लियाक़त

है समुंदर सामने प्यासे भी हैं पानी भी है

रम्ज़ अज़ीमाबादी

इक नशा सा ज़ेहन पर छाने लगा

रमेश कँवल

तेरी महफ़िल में सितारे कोई जुगनू लाया

राम रियाज़

न आँखें सुर्ख़ रखते हैं न चेहरे ज़र्द रखते हैं

राम रियाज़

दिल की धड़कन उलझ रही है ये कैसी सौग़ात ग़ज़ल की

रख़शां हाशमी

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