दम Poetry (page 57)

शिकस्त खा के भी कब हौसले हैं कम मेरे

अफ़ज़ल गौहर राव

अगर हम गीत न गाते

अफ़ज़ाल अहमद सय्यद

मेला

आफ़ताब शम्सी

आजिज़ हूँ तिरे हाथ से क्या काम करूँ मैं

आफ़ताब शाह आलम सानी

हज़ीमतें जो फ़ना कर गईं ग़ुरूर मिरा

आफ़ताब इक़बाल शमीम

हाँफती नद्दी में दम टूटा हुआ था लहर का

आफ़ताब इक़बाल शमीम

अपने ही दम से चराग़ाँ है वगरना 'आफ़्ताब'

आफ़ताब हुसैन

करता कुछ और है वो दिखाता कुछ और है

आफ़ताब हुसैन

अस्ल हालत का बयाँ ज़ाहिर के साँचों में नहीं

आफ़ताब हुसैन

मुमकिन है शय वही हो मगर हू-ब-हू न हो

आफ़ताब अहमद

तुम्हारे हिज्र में क्यूँ ज़िंदगी न मुश्किल हो

अफ़सर इलाहाबादी

कुछ भी नहीं जो याद-ए-बुतान-ए-हसीं नहीं

अफ़सर इलाहाबादी

गुज़रे लम्हात का एहसास हुआ जाता है

अफ़रोज़ आलम

नज़्म

आदिल मंसूरी

खिड़की अंधी हो चुकी है

आदिल मंसूरी

चाँद के पेट में हमल मछली

आदिल मंसूरी

हाथ में आफ़्ताब पिघला कर

आदिल मंसूरी

दुम

आदिल लखनवी

मेरे रस्ते में भी अश्जार उगाया कीजे

अदीम हाशमी

जहान-ए-इल्म का बाब-ए-निसाब होते हुए

अदील ज़ैदी

वो पौ फटी वो किरन से किरन में आग लगी

अदीब सहारनपुरी

बख़्शे फिर उस निगाह ने अरमाँ नए नए

अदीब सहारनपुरी

किस की ख़ल्वत से निखर कर सुब्ह-दम आती है धूप

अदीब ख़लवत

तसव्वुरात में इन को बुला के देख लिया

अबु मोहम्मद वासिल

जबीन-ए-शौक़ पर कोई हुआ है मेहरबाँ शायद

अबु मोहम्मद वासिल

अगर मेरी जबीन-ए-शौक़ वक़्फ़-ए-बंदगी होती

अबु मोहम्मद वासिल

आगे वो जा भी चुके लुत्फ़-ए-नज़ारा भी गया

अबु मोहम्मद वासिल

गोया चमन चमन न था

अबु मोहम्मद सहर

चाँद का रक़्स सितारों का फ़ुसूँ माँगती है

अबु मोहम्मद सहर

साँप सर मार अगर जो जावे मर

आबरू शाह मुबारक

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