कल रात Poetry (page 3)

नज़र की धूप में आने से पहले

सरफ़राज़ ज़ाहिद

नज़र आते थे हम इक दूसरे को

सरफ़राज़ ज़ाहिद

शायद मिट्टी मुझे फिर पुकारे

सारा शगुफ़्ता

अब ऐसी बातें कोई करे जो सब के मन को लुभा जाएँ

सालिक लखनवी

खो दिए हैं चाँद कितने इक सितारा माँग कर

सलीम फ़िगार

दिलों में दर्द भरता आँख में गौहर बनाता हूँ

सलीम अहमद

बैठे हैं सुनहरी कश्ती में और सामने नीला पानी है

सलीम अहमद

ये धरती ख़ूब-सूरत है

सलाम मछली शहरी

मज़दूर लड़की

सलाम मछली शहरी

धरती अमर है

सलाम मछली शहरी

तस्वीरें

सज्जाद ज़हीर

मी-यौमिल-हिसाब

साजिदा ज़ैदी

कलियाँ नीला आसमान ज़ंजीर

साजिदा ज़ैदी

कुछ बे-नाम तअल्लुक़ जिन को नाम अच्छा सा देने में

साइमा असमा

बूटा बूटा मुँह खोलेगा पत्ता पत्ता बोलेगा

सैलानी सेवते

वो सुब्ह कभी तो आएगी

साहिर लुधियानवी

उमीद

साहिर लुधियानवी

तुलू-ए-इश्तिराकियत

साहिर लुधियानवी

तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा

साहिर लुधियानवी

मैं पल दो पल का शाइ'र हूँ

साहिर लुधियानवी

धरती की सुलगती छाती से बेचैन शरारे पूछते हैं

साहिर लुधियानवी

ऐ शरीफ़ इंसानो

साहिर लुधियानवी

अब कोई गुलशन न उजड़े अब वतन आज़ाद है

साहिर लुधियानवी

तेरे महल में कैसे बसर हो इस की तो गीराई बहुत है

साहिर होशियारपुरी

दुम

साग़र ख़य्यामी

दरवाज़े को पीट रहा हूँ पैहम चीख़ रहा हूँ

सादिक़

नए फ़ित्नों के हर जानिब से इतने सर निकल आए

सअादत बाँदवी

सत्‌ह-बीं थे सब, रहे बाहर की काई देखते

रियाज़ मजीद

ख़ुद में झाँका तो अजब मंज़र नज़र आया मुझे

रियाज़ मजीद

जोगी

रज़ी रज़ीउद्दीन

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