दुनिया Poetry (page 2)

मुग़ल की कार

असद जाफ़री

नज़्म

अख़्तर हुसैन जाफ़री

दूर किनारा

मीराजी

न शिकवा लब तक आएगा न नाला दिल से निकलेगा

बाल बाल दुनिया पर उस का ही इजारा है

ज़ुल्फ़िकार नक़वी

वो कहते हैं कि हम को उस के मरने पर तअ'ज्जुब है

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

बसाई मैं ने जो क़ल्ब-ए-हज़ीं में

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

बसाई मैं ने जो क़ल्ब-ए-हज़ीं में

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

शब में दिन का बोझ उठाया दिन में शब-बेदारी की

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

किसी का ख़्वाब किसी का क़यास है दुनिया

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

कभी जब्र-ओ-सितम के रू-ब-रू सर ख़म नहीं होता

ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद

रो लेते थे हँस लेते थे बस में न था जब अपना जी

ज़ुहूर नज़र

रो लेते थे हँस लेते थे बस में न था जब अपना जी

ज़ुहूर नज़र

रो लेते थे हँस लेते थे बस में न था जब अपना जी

ज़ुहूर नज़र

बादा-कश हूँ न पारसा हूँ मैं

ज़ुहैर कंजाही

अलिफ़ ज़बर अ

ज़ुबैर रिज़वी

ज़िंदगी ऐसे घरों से तो खंडर अच्छे थे

ज़ुबैर रिज़वी

क़सीदे ले के सारे शौकत-ए-दरबार तक आए

ज़ुबैर रिज़वी

कई कोठे चढ़ेगा वो कई ज़ीनों से उतरेगा

ज़ुबैर रिज़वी

कभी ख़िरद से कभी दिल से दोस्ती कर ली

ज़ुबैर रिज़वी

अब उस का वस्ल महँगा चल रहा है

ज़ुबैर अली ताबिश

अपनी तश्हीर करे या मुझे रुस्वा देखे

ज़िया शबनमी

तुम ने भी उन से ही मिलना होता है

ज़िया मज़कूर

इसी नदामत से उस के कंधे झुके हुए हैं

ज़िया मज़कूर

इतना सोचा तुझे कि दुनिया को

ज़िया जालंधरी

तसलसुल

ज़िया जालंधरी

कैसे दुख कितनी चाह से देखा

ज़िया जालंधरी

तू ने नज़रों को बचा कर इस तरह देखा मुझे

ज़िया फ़तेहाबादी

लो आज समुंदर के किनारे पे खड़ा हूँ

ज़िया फ़तेहाबादी

जुनूँ पे अक़्ल का साया है देखिए क्या हो

ज़िया फ़तेहाबादी

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