पूजा Poetry (page 3)

उन को जो शुग़्ल-ए-नाज़ से फ़ुर्सत न हो सकी

हसरत मोहानी

सूखे हुए दरख़्त के पत्तों को देखना

हसन निज़ामी

इश्क़ में हर नफ़स इबादत है

हफ़ीज़ बनारसी

दुनिया को रू-शनास-ए-हक़ीक़त न कर सके

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

उबल पड़ा यक-ब-यक समुंदर तो मैं ने देखा

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

मसाफ़त की गराँ हर एक साअ'त टूट जाती है

ग़ुफ़रान अमजद

वारस्ता उस से हैं कि मोहब्बत ही क्यूँ न हो

ग़ालिब

वो अगर अब भी कोई अहद निभाना चाहे

फरीहा नक़वी

मेरी कोई तारीफ़ नहीं है मैं वक़्फ़ों वक़्फ़ों में हूँ

फ़रहत एहसास

हमें तो साथ चलने का हुनर अब तक नहीं आया

फ़रह इक़बाल

घर हुआ गुलशन हुआ सहरा हुआ

फ़ना निज़ामी कानपुरी

तेरे दर से न उठा हूँ न उठूँगा ऐ दोस्त

फ़ना बुलंदशहरी

तिरा ग़म रहे सलामत यही मेरी ज़िंदगी है

फ़ना बुलंदशहरी

मुझ को दुनिया के हर इक ग़म से छुड़ा रक्खा है

फ़ना बुलंदशहरी

जल्वा जो तिरे रुख़ का एहसास में ढल जाए

फ़ना बुलंदशहरी

हरम है क्या चीज़ दैर क्या है किसी पे मेरी नज़र नहीं है

फ़ना बुलंदशहरी

हाँ वही इश्क़-ओ-मोहब्बत की जिला होती है

फ़ना बुलंदशहरी

है वज्ह कोई ख़ास मिरी आँख जो नम है

फ़ना बुलंदशहरी

बा-होश वही हैं दीवाने उल्फ़त में जो ऐसा करते हैं

फ़ना बुलंदशहरी

रक़ीब से!

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

हँसने में रोने की आदत कभी ऐसी तो न थी

एजाज़ उबैद

ख़याल के फूल खिल रहे हैं बहार के गीत गा रहा हूँ

एहसान दरबंगावी

है निगाहों में कोह-ए-तूर मियाँ

डॉक्टर आज़म

एक ईमान है बिसात अपनी

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

मुझ को तुझ से जो कुछ मोहब्बत है

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

ये हादसा मिरी आँखों से गर नहीं होता

चित्रांश खरे

नए झगड़े निराली काविशें ईजाद करते हैं

चकबस्त ब्रिज नारायण

बे-बुलाए हुए जाना मुझे मंज़ूर नहीं

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

दुनिया में इबादत को तिरी आए हुए हैं

बहराम जी

बहस क्यूँ है काफ़िर-ओ-दीं-दार की

बहराम जी

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