अभिव्यक्ति Poetry (page 9)

घर है तो दर भी होगा दीवार भी रहेगी

हमीद अलमास

सारे चेहरे ताँबे के हैं लेकिन सब पर क़लई है

हकीम मंज़ूर

लफ़्ज़ से जब न उठा बार-ए-ख़याल

हफ़ीज़ ताईब

सख़्त-गीर आक़ा

हफ़ीज़ जालंधरी

वापसी

हबीब तनवीर

कितना सुकूत है रसन-ओ-दार की तरफ़

हबीब जालिब

बोसीदा इमारात को मिस्मार किया है

गुलज़ार वफ़ा चौदरी

वफ़ा की तश्हीर करने वाला फ़रेब-गर है सितम तो ये है

गुलज़ार बुख़ारी

उस शोख़ से क्या कीजिए इज़्हार-ए-तमन्ना

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

दिल के दामन में जो सरमाया-ए-अफ़्कार न था

गुहर खैराबादी

रोज़ रौशन रहें हालात ज़रूरी तो नहीं

गोपाल कृष्णा शफ़क़

कहने सुनने का अजब दोनों तरफ़ जोश रहा

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

समीता-पाटिल

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

अपने अशआर को रुस्वा सर-ए-बाज़ार करूँ

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

नशात-ए-इज़हार पर अगरचे रवा नहीं ए'तिबार करना

ग़ुलाम हुसैन साजिद

मसाफ़त-ए-उम्र में ज़ियाँ का हिसाब होता है जुस्तुजू से

ग़ुलाम हुसैन साजिद

आँख की पुतली में सूरज सर में कुछ सौदा उगा

ग़यास मतीन

ख़ून-ए-दिल मुझ से तिरा रंग-ए-हिना माँगे है

ग़यास अंजुम

न लेवे गर ख़स-ए-जौहर तरावत सब्ज़ा-ए-ख़त से

ग़ालिब

जिस बज़्म में तू नाज़ से गुफ़्तार में आवे

ग़ालिब

हो गई है ग़ैर की शीरीं-बयानी कारगर

ग़ालिब

गर ख़ामुशी से फ़ाएदा इख़्फ़ा-ए-हाल है

ग़ालिब

चश्म-ए-ख़ूबाँ ख़ामुशी में भी नवा-पर्दाज़ है

ग़ालिब

अहल-ए-दिल के वास्ते पैग़ाम हो कर रह गई

गणेश बिहारी तर्ज़

ज़िंदगी दर्द की कहानी है

फ़िराक़ गोरखपुरी

कुछ न कुछ इश्क़ की तासीर का इक़रार तो है

फ़िराक़ गोरखपुरी

मिरे ज़ख़्म-ए-जिगर को ज़ख़्म-ए-दामन-दार होना था

फ़ाज़िल अंसारी

जुरअत-ए-इज़हार से रोकेगी क्या

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

तमाशा फिर सर-ए-बाज़ार करना

फ़य्याज़ तहसीन

आँखों में न ज़ुल्फ़ों में न रुख़्सार में देखें

फ़ातिमा हसन

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