जगह Poetry (page 8)

कहीं ये तस्कीन-ए-दिल न देखी कहीं ये आराम-ए-जाँ न देखा

सरस्वती सरन कैफ़

यूँ अकेला दश्त-ए-ग़ुर्बत में दिल-ए-नाकाम था

साक़िब लखनवी

मिलता जो कोई टुकड़ा इस चर्ख़-ए-ज़बरजद में

साक़िब लखनवी

इबरत-ए-दहर हो गया जब से छुपा मज़ार में

साक़िब लखनवी

अलकुबड़े

साक़ी फ़ारुक़ी

आज शायद ज़िंदगी का फ़ल्सफ़ा समझा हूँ मैं

सलीम शुजाअ अंसारी

अपनी ख़ुद्दारी सलामत दिल का आलम कुछ सही

सालिक लखनवी

है आरज़ू कि अपना सरापा दिखाई दे

सलीम शाहिद

घर के दरवाज़े खुले हों चोर का खटका न हो

सलीम शाहिद

कहानी लिखते हुए दास्ताँ सुनाते हुए

सलीम कौसर

दस्त-ए-दुआ को कासा-ए-साइल समझते हो

सलीम कौसर

जाने अंदर क्या हुआ मैं शोर सुन कर ऐ 'सलीम'

सलीम अहमद

मेरा दुश्मन

सलीम अहमद

'सलीम' दश्त-ए-तमन्ना में कौन है किस का

सलीम अहमद

कल नशात-ए-क़ुर्ब से मौसम बहार-अंदाज़ा था

सलीम अहमद

अस्पताल

सलाम मछली शहरी

तस्वीर-ए-चश्म-ए-यार का ख़्वाहाँ है बाग़बाँ

सख़ी लख़नवी

फिर उलझते हैं वो गेसू की तरह

सख़ी लख़नवी

वो पल ये घड़ी

साजिदा ज़ैदी

जज़्बा-ए-इश्क़ भी है गर्मी-ए-बाज़ार भी है

साजिद सिद्दीक़ी लखनवी

कुछ बे-नाम तअल्लुक़ जिन को नाम अच्छा सा देने में

साइमा असमा

नज़र में वो उतारे जा रहे हैं

साइम जी

दिल में रहना है परेशान ख़यालों का हुजूम

साइब आसमी

ज़िंदगानी का ये पहलू कुछ ज़रीफ़ाना भी है

साहिर सियालकोटी

फिर वही कुंज-ए-क़फ़स

साहिर लुधियानवी

सदा अपनी रविश अहल-ए-ज़माना याद रखते हैं

सहर अंसारी

रास्तों में इक नगर आबाद है

सहर अंसारी

रास्तों में इक नगर आबाद है

सहर अंसारी

क्यूँ हर उरूज को यहाँ आख़िर ज़वाल है

सग़ीर मलाल

साक़ी की इक निगाह के अफ़्साने बन गए

साग़र सिद्दीक़ी

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