जहान Poetry (page 11)

सफ़र ऐसा है कहाँ का

अहमद हमेश

दर-अस्ल ये नज़्म लिखी ही नहीं गई

अहमद हमेश

अपने जैसे आशिक़ों के नाम

अहमद हमेश

आख़िरी मुकालिमा

अहमद हमेश

दिलों को रंज ये कैसा है ये ख़ुशी क्या है

अहमद हमदानी

गर एक शब भी वस्ल की लज़्ज़त न पाए दिल

आग़ा मोहम्मद तक़ी

दिखाई दे कि शुआ-ए-बसीर खींचता हूँ

अफ़ज़ाल नवेद

हर चंद ज़िंदगी का सफ़र मुश्किलों में है

अफ़ज़ल मिनहास

मैं सुन रहा हूँ जो दुनिया सुना रही है मुझे

अफ़ज़ल गौहर राव

असीर-ए-हाफ़िज़ा हो आज के जहान में आओ

आफ़ताब इक़बाल शमीम

मुमकिन है शय वही हो मगर हू-ब-हू न हो

आफ़ताब अहमद

कुछ भी नहीं जो याद-ए-बुतान-ए-हसीं नहीं

अफ़सर इलाहाबादी

फैले हुए ग़ुबार का फिर मो'जिज़ा भी देख

अफ़रोज़ आलम

मैं गुफ़्तुगू हूँ कि तहरीर के जहान में हूँ

अदीम हाशमी

आँखों में आँसुओं को उभरने नहीं दिया

अदीम हाशमी

जहान-ए-इल्म का बाब-ए-निसाब होते हुए

अदील ज़ैदी

ज़िंदगी ख़ाक-बसर शोला-ब-जाँ आज भी है

अबु मोहम्मद सहर

काली ग़ज़ल सुनो न सुहानी ग़ज़ल सुनो

अबु मोहम्मद सहर

ये यक़ीं ये गुमाँ ही मुमकिन है

अबरार अहमद

ये जो हम तख़्लीक़-ए-जहान-ए-नौ में लगे हैं पागल हैं

अभिषेक शुक्ला

हमीं जहान के पीछे पड़े रहें कब तक

अभिषेक शुक्ला

सुर्ख़ सहर से है तो बस इतना सा गिला हम लोगों का

अभिषेक शुक्ला

ख़ला के जैसा कोई दरमियान भी पड़ता

अभिषेक शुक्ला

फ़रेब-ए-ज़ार मोहब्बत-नगर खुला हुआ है

अब्दुर्राहमान वासिफ़

शराब लाल-ए-लब-ए-दिल-बराँ है मुझ कूँ मुबाह

अब्दुल वहाब यकरू

न मोहतसिब की न हूर-ओ-जिनाँ की बात करो

अब्दुल मजीद सालिक

जो मुश्त-ए-ख़ाक हो उस ख़ाक-दाँ की बात करो

अब्दुल मजीद सालिक

जब कोई मेहरबान होता है

अब्दुल मजीद ख़ाँ मजीद

शख़्सिय्यत की मौसीक़ी

अब्दुल अहद साज़

लफ़्ज़ का दरिया उतरा दश्त-ए-मआनी फैला

अब्दुल अहद साज़

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