दर-अस्ल ये नज़्म लिखी ही नहीं गई

बाज़ बातें बहुत मा'मूली होती हैं

मगर उन के दाँत पूरे जीवन को काटते रहते हैं

ये एक नज़्म के दरमियान हुआ आग़ाज़ था जो इख़्तिताम तक पहुँचने से पहले ही पूरी नज़्म समेत गुम हो गया

शायद बाज़ बहुत मा'मूली बातों के दाँत एक पूरी नज़्म के जीवन को मुसलसल काटते रहने के लिए होंगे

सो तुम्हारी नज़्म गुम हो गई 'हमेश'

सो तुम भी गुम हो जाओ 'हमेश'

अन-देखी तहदारियों में गुम हो जाओ 'हमेश'

इस से पहले कि किसी आवाज़ के दाँत अदम-ए-तारीक में कौंद जाएँ

क्यूँ न तुम अभी ये जान लो कि

मा'मूली से मा'मूली बात अपने हिस्से की आवाज़ से गुज़र गए न जानने वाले के लिए तो बाज़गश्त बन जाती है

मगर जानने वाले के लिए मौत के दाँत

वर्ना ये उसी का तो सौंदर्य जहाँ-गुज़ीदा है कि

धूप इतनी धुआँ-धार गिर रही है कि बिजली के खम्बे और चले गए हैं

अब कभी कुछ नहीं सुनाई दे सकेगा

पहले भी क्या सुनाई दिया होगा

कि एक अभागी समाअ'त को एक घंटे की नशा गुमान ज़र्ब-ए-नादीदा

या तीन मिनट की सुकूत-ए-ख़ुश-गवार ठोकर पर रख लिया होगा

और कहा गया कि अब इंतिज़ार न करना कि अब बहुत हो चुका कि नहीं चाहिए कि जो कभी चाहिए था

सो जिस राह पर आज तुम उदास मक़्सूम बैठे हो

इस से तुम्हारे हिस्से की कोई मन-चाही राह तो के नहीं मिलती

वो कोई और ज़माना रहा होगा

वर्ना कहाँ की चंबल नदी और कहाँ उस का पानी

और कभी किनारे से डाला हुआ पुराना ताँबे का पैसा उस की तह में पड़ा नज़र आ रहा था

तो वहाँ अब तक कितनी ही हासिद सौतेली परछाइयों का नुज़ूल हुआ होगा

तुम्हारे आँसुओं के संकन को अन-देखी मिट्टी में दबा के ऊपर से पाट देने के लिए

सो गुम हो जाओ 'हमेश'

उस की नज़र से और अपनी नज़र से भी

ऐसा तो कभी नहीं हुआ होगा

कि अगर किसी ने ख़ुदा को नहीं देखा

तो क्या ख़ुदा ने भी किसी को नहीं देखा

कि अगर कोई ख़ुदा से नहीं मिला

तो क्या ख़ुदा भी किसी से नहीं मिला

फिर वो कौन है जो अपने जज़्ब के हिस्सा की आसमानी कंघी मोल ले के अपने सर के बीच

माँग काढ़ता है

उस समय जब उस के ग़म-दीदा हिस्से की दुनिया में उस के लुत्फ़-ए-नादीदा की बारिश हो रही होती है

या शायद किसी जहान-ए-आसूदा की उम्मीद में किसी जहान-ए-ना-आसूदा से गुज़रना पड़ता है

तब वापस ले जाने के लिए आयतों से शुक्र के एक दाने को समेट के

अपनी जगह ले जाने वाली चियूँटियों के जमाव से पुरानी यादों में महफ़ूज़ रखी

हाथियों की क़तार से ए'तिबार-ए-अदम में ज़म होना पड़ता है

भूल जाओ कि तुम उस के लिए सियाह गुलू-बंद में चमकते तीन नगों में से किसी एक नग में भी शामिल हो सकोगे

(1256) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Dar-asl Ye Nazm Likhi Hi Nahin Gai In Hindi By Famous Poet Ahmad Hamesh. Dar-asl Ye Nazm Likhi Hi Nahin Gai is written by Ahmad Hamesh. Complete Poem Dar-asl Ye Nazm Likhi Hi Nahin Gai in Hindi by Ahmad Hamesh. Download free Dar-asl Ye Nazm Likhi Hi Nahin Gai Poem for Youth in PDF. Dar-asl Ye Nazm Likhi Hi Nahin Gai is a Poem on Inspiration for young students. Share Dar-asl Ye Nazm Likhi Hi Nahin Gai with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.