जिगर Poetry (page 29)

नहीं घर में फ़लक के दिल-कुशाई

आबरू शाह मुबारक

क्यूँ बंद सब खुले हैं क्यूँ चीर अटपटा है

आबरू शाह मुबारक

किस की रखती हैं ये मजाल अँखियाँ

आबरू शाह मुबारक

कहें क्या तुम सूँ बे-दर्द लोगो किसी से जी का मरम न पाया

आबरू शाह मुबारक

जलते थे तुम कूँ देख के ग़ैर अंजुमन में हम

आबरू शाह मुबारक

गुनाहगारों की उज़्र-ख़्वाही हमारे साहिब क़ुबूल कीजे

आबरू शाह मुबारक

हैराँ नहीं हैं हम कि परेशाँ नहीं हैं हम

अब्र अहसनी गनौरी

लग़्ज़िश-ए-साक़ी-ए-मय-ख़ाना ख़ुदा ख़ैर करे

अब्दुल्लतीफ़ शौक़

ख़ुश-क़दाँ जब ख़िराम करते हैं

अब्दुल वहाब यकरू

गल को शर्मिंदा कर ऐ शोख़ गुलिस्तान में आ

अब्दुल वहाब यकरू

नीम-चा जल्द म्याँ ही न मियाँ कीजिएगा

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

महफ़िल इश्क़ में जो यार उठे और बैठे

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

ख़फ़ा मत हो मुझ को ठिकाने बहुत हैं

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

बाग़ में जब कि वो दिल ख़ूँ-कुन-ए-हर-गुल पहुँचे

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

अबस ढूँडा किए हम ना-ख़ुदाओं को सफ़ीनों में

अब्दुल रहमान बज़्मी

मैं पहुँचा अपनी मंज़िल तक मगर आहिस्ता आहिस्ता

अब्दुल मन्नान तरज़ी

मरहम-ए-ज़ख़्म-ए-जिगर हो जाए

अब्दुल मजीद हैरत

मरहम ज़ख़्म-ए-जिगर हो जाए

अब्दुल मजीद हैरत

नख़चीर हूँ मैं कश्मकश-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र का

अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद

वही दर्द है वही बेबसी तिरे गाँव में मिरे शहर में

अब्बास दाना

क़फ़स-नसीबों का उफ़ हाल-ए-ज़ार क्या होगा

आसी रामनगरी

न मेरे दिल न जिगर पर न दीदा-ए-तर पर

आसी ग़ाज़ीपुरी

कुछ तो है वैसे ही रंगीं लब ओ रुख़्सार की बात

आल-ए-अहमद सूरूर

मज़ा है इम्तिहाँ का आज़मा ले जिस का जी चाहे

आग़ा अकबराबादी

जा लड़ी यार से हमारी आँख

आग़ा अकबराबादी

हमारे सामने कुछ ज़िक्र ग़ैरों का अगर होगा

आग़ा अकबराबादी

चाहत ग़म्ज़े जता रही है

आग़ा अकबराबादी

दीवाली

आफ़ताब राईस पानीपती

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